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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. १ उ. १ सू० १८ नागकुमारवक्तव्यतानिरूपणम् २५३ असुरकुमारविषये सर्वाण्यपि प्रश्नोत्तराणि नैरयिकवज्ज्ञेयानि, यतः “ ठिईऊसासाहार " इत्यादि गाथा - प्रतिपादितानि चत्वारिंशत्सूत्राणि ४०, "परिणयं चिया " इत्यादि गाथोक्तानि पत्राणि ६, “भेदिय चिया " इत्यादि गृहीतानि अष्टदशसूत्राणि १८, " बंधोदय " इत्यादि गाथा गृहीतानि अष्टौ सूत्राणि ८, तदेवं मिलित्वा द्विसप्तति सूत्राणि नारकप्रकरण कथितानि शेषेषु असुरकुमारादि त्रयोविंशति दण्डकेषु समानानि, अतो नारकवक्तव्यत्वेनैव कथितानि || सू० १७॥ नागकुमार वक्तव्यतानिरूपणम् 46 मूलम् - नागकुमाराणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहणणं दसवाससहस्साइं उक्कोसेणं देसूणाई दो शब्दकी तरह अ का लोप हुआ है । अतः जिस प्रकार पिधानमें अपिधान शब्द माना जाता है उसी प्रकार यहाँ पर भी " अभिध्या " शब्द माना गया है । 'अभिध्या' शब्दका अर्थ लोभ है । यह लोभ जिसे हुआ है वह अभिध्यित है। अभिध्यितका भाव ही अभिध्यिता है। देखने की इच्छा के लोभकी जो उत्पादकता है वही अभिध्यिता है। असुरकुमारोंकी वक्तव्यताको जो नारकोंकी वक्तव्यतावत् कहा गया है उसका आशय इस प्रकार से है कि “ठिई ऊसासाहार" इत्यादि गाथामें कहे गये ४० सूत्र, “परिणय चिया" इस गाथामें कहे गये ६सूत्र, “भेदियचिया" इस गाथा में कहे गये १८सूत्र, और "बंधोदय" इत्यादि गाथामें कहे गये ८ सूत्र ये सब ७२ सूत्र नारकके प्रकरणमें आये हैं । सो ये ७२ सूत्र असुरादि २३ दण्डकों में समान हैं ॥ १७॥ उत्तर भणी ४शे. “भिज्झियत्ताए" सही 'पिधान' शब्हनी प्रेम 'अ' ना सोप થયા છે. તેથી જેમ પિયાન’ માં ‘અપિધાન' શબ્દ માની લેવાય છે તેમ यहीं पशु “अभिध्या” शब्द भानी सेवायो छे. "अभिध्या" भेटले सोल. भे सोल लेने थयो होय छे तेने 'अभिध्यित' हे छे. अलिध्यितना लाव ४ અભિય્યિતા છે. જોવાની ઇચ્છાના લોભની જે ઉત્પાદકતા છે તે જ અભિક્યિતા છે. અસુરકુમારાના કથનને નારકાના કથન પ્રમાણે કહેવાના આશય એ છે કે “ठिईऊसासाहार” त्यिाहि गाथाओ मां उडेवामां आवेला ४०सूत्र, “परिणयं चिया " आा गाथामां उडेसां ६ सूत्र, “भेदिय चिया" या गाथामा उडेसां १८ सूत्रो मने "बंधोदय" इत्यादि गाथामा उडेसां ८ सूत्रो से रीते हु ७२ सूत्रो નારક જીવાના પ્રકરણમાં આવી ગયાં છે. તે ૭૨ સૂત્રેા અસુરાદિ ૨૩ દડકામાં સમાન છે. સૂ. ૧૭ના શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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