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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श०१ उ०१सू०१७ असुरकुमारादिवक्तव्यतानिरूपणम् २४५ ततया, कान्ततया, प्रियतया, मनोज्ञतया, मनआमतया, भिध्यिततया, ऊर्ध्वतया, नो अधस्तया, मुखतया, नो दुःखतया भूयोभूयः परिणमन्ति । असुरकुमाराणां भदन्त ! पूर्वाहनाः पुद्गलाः परिणताः असुरकुमाराभिलापेन यथा नैरयिकाणां यावत् नो अचलितं कर्म निर्जरयन्ति ॥२०१७॥ किस आकारसे बारंबार परिणमते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! उनके वे आहाररूपसे गृहीत हुए पुद्गल (सोइंदियत्ताए) श्रोत्रेन्द्रियरूपसे, (जाव फासिंदियत्ताए) यावत् स्पर्शन इन्द्रियरूपसे (सुरूवत्ताए) सुरूपपनेसे (सुवण्णत्ताए) सुवर्णपनेसे (इट्टत्ताए) इष्टपनेसे, (इच्छियत्ताए)इच्छितपनेसे (कंतत्ताए) कान्तपनेसे( पियत्ताए) प्रियपनेसे (मणुन्नत्ताए) मनोज्ञपनेसे(मण्णमत्ताए)परमानंदपनेसे (भिजियत्ताए) दिदृक्षाके लोभको उत्पन्न करनेपनेसे(उत्ताए) उर्ध्वपनेसे (णो अहत्ताए) नीचेपनेसे नहीं,(सुहत्ताए नो दुहत्ताए) सुखपनेसे दुःखपनेसे नहीं (भुज्जोभुज्जो परिणमंति) बारंबार परिणमन करते रहते हैं । (भंते) हे भदन्त ! (असुरकुमाराण पुब्वाहारिया पोग्गला परिणया ) असुरकुमारों के पूर्वमें आहारके विषयभूत बने हुए पुद्गल क्या परिणत हो चुके होते हैं ? ( असुरकुमाराभिलावेण जहा णेरइयाणं जाव नो अचलियं कम्मं निज्जरेंति) असुरोंके अभिलापपूर्वक ये सब कथन नारक जीवोंकी तरह "अचलितकर्मकी निर्जरा नहीं करते हैं” यहां तक पाठके अनुसार उनके विषयमें समझ लेना चाहिये । तेमणे मा.२ ३५ अडएर ४२८ ते ५सो (सोइंदियत्ताए) श्रोत्रेन्द्रिय३५थी, (जाव फासिदियत्ताए) २५शन धन्द्रिय सुधीनी छन्द्रियो ३पे, पशिशुभे छे. (सुरूवत्ताए) सु३५५णे, (सुवण्णत्ताए) सुवर्णपणे, (इट्टत्ताए) ४०टपणे, (इच्छियत्ताए) छितपणे, ( कंतताए) अन्त५, ( पियत्ताए ) प्रियपणे, ( मणुन्नत्ताए ) भनाज्ञपणे ( मण्णमत्ताए ) ५२मान होत्यापणे, (भिज्जियचाए) तवानी दोन उत्पन्न ४२११वापणे, परिशुभेछ. (उड्ढत्ताए) मा परिणभे छ, (णो अहत्ताए) नीयामा परिणमता नथी. (सुहत्ताए णो दुहत्ताए) सुमपामा परिभे छ सपनामा नही. (भुज्जो भुज्जो परिणमंति) उपरीत २ ते ५सो पारपा२ परिमन २त २ छ. (भंते !) महन्त ! (असुरकुमाराणं पुवाहारियो. पोगला परिणया) शु भूतभा मसु२भाराना मा२न। विषय३५ मनसi पुसोनुं परिमन 4 यूश्युं डाय छ ? (असुरकुमाराभिलावेण जहा णेरइयाणंजाव नो अचलियं कम्मं निज्जरेंति) ना२४ ७वाना विषयमा मा विषय પ્રમાણે કથન કરવામાં આવ્યું છે તે પ્રમાણે જ “અચલિત કર્મની નિર્જર કરતા નથી ત્યાં સુધીનું કથન અસુરકુમારે વિષે પણ સમજી લેવું. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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