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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. १. उ० १ सू० १५ “ कर्मपुदगलविषयनिरूपणम्" २२९ गृहीतान् उदीरयन्ति तान् किमतीतकालसमयगृहीतान् पुद्गलानुदीरयन्ति, प्रत्यु त्पन्नकालसमय गृह्यमाणान् पुद्गलान् उदीरयन्ति, ग्रहणसमयपुरस्कृतान् पुद्गलानुदीरयन्ति ? । गौतम ! अतीतकालसमयगृहीतान् पुद्गलान् उदीरयन्ति, नो प्रत्युत्पन्नकालसमयगृह्यमाणान् पुद्गलान् उदीरयंति नो ग्रहणसमयपुरस्कृतान् पुद्गलान् उदीरयन्ति । एवं वेदयन्ति निजेरयन्ति ॥ मू. १५॥ समयमें ग्रहण करते हैं, किन्तु वर्तमानकाल समय में वे उन्हें ग्रहण करते हैं । ( भंते ! ) हे भदन्त ! (णेरइया) नारक जीव ( तेयाकम्मत्ताए ) तैजस कार्मण रूपसे (गहिए) ग्रहण किये गये (जे पोग्गले) जिन पुद्गलोंकी (उदीरेंति) उदीरणा करते हैं (ते ) वे (किं ) क्या (तीतकालसमयगहिए पोग्गले उदीरेंति) अतीतकाल समयमें गृहीत हुए हैं ऐसे पुद्गलोंकी उदीरणा करते हैं ? या (पडुप्पण्णकालसमयघेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति) वर्तमानकालसमयमें ग्रहण हो रहे ऐसे पुद्गलोंकी उदीरणा करते हैं ? या (गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति ) जिनका उदयकाल आगे आनेवाला है ऐसे पुद्गलोंकी उदीरणा करते हैं ? (गोयमा) हे गौतम! (अतीतकालसमयहिए पोग्गले उदीरेंति) भूतकाल समय में गृहीत हुए ऐसे पुद्गलोंकी वे उदीरणा करते हैं । (णो पडुप्पण्णकाल. समयघेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति, णो गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति) वर्तमानकालमें ग्रहण हो रहे पुद्गलोंकी उदीरणा नहीं करते हैं और न जिनका उदयकाल आगे आनेवाला है ऐसे पुद्गलोंकी उदीरणा करते हैं । (एवं वेदेति णिजरेंति) इसी तरह वे वेदते हैं, निर्जरा करते हैं, ऐसा जानना चाहिये। (भंते) महन्त ! (नेरइया) ॥२४ । (तेया कम्मत्ताए) तेस मा. ३पे (गहिए) अ ४२सा (जे पोग्गले) २ पुगतानी (उदीरेंति) ही२९॥ अरे छ (ते) ते (किं) शु (तीतकालसमयगहिए पोग्गले उदीरेंति) भूताना समये अडान अरसा पानी ही२३॥ ४२ छ ? ॐ (पडुप्पण्णकालसमयघेप्पमाणे पोग्गले उदीरें'त्ति) वतमान समये अY ४२७ २i Yसानी ही२४॥ ४२ छ ? : (गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति) है भने। या भविष्यमा मावान छ એવાં પુદ્ગલોની ઉદીરણું કરે છે? __ (गोयमा !) गौतम! (अतीतकालसमयगहिए पोग्गले उदीरे ति) तमे। भूतणे अडए१ ४२ पुगतानी हीर! ४२ छ. (णो पडुप्पण्णकालसमयघेप्पमाणे पोग्गले उदीरे ति, णो गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरें ति) तभानકાળમાં ગ્રહણ કરાઈ રહેલાં પુદ્ગલોની ઉદીરણું કરતા નથી અને ભવિષ્યકાળમાં ध्यम माना गयोनी ही२६! ४२ता नथी. (एवं वेदेति णिज्जरें ति) એજ પ્રમાણે વેદના અને નિર્જરણ કરવા વિષે પણ સમજી લેવું. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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