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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटोका श०१उ १ सू० १४ पुद्गलसूत्रर्णनम् । २२१ पुद्गलान् ‘उदीरेंति ' उदीरयन्ति 'तं जहा' तद्यथा-अणूंश्चैव बादराँश्चैव ४ । 'सेसा वि एवं चे' शेषे अपि एवमेव शेषे-वक्ष्यमाणे वेदननिर्जरणे अपि एवमेव-चयोपचयसूत्रबदेव 'भाणियव्वा' भणितव्ये-पठितव्ये, तथाहि-' वेदेति' वेदयन्ति 'निज्जरेंति' निर्जरयन्ति । अयं भावः-नैरयिकाः मूक्ष्मस्थूलानां द्विविधानां पुद्गलानां वेदनं निर्जरणं च कर्मद्रव्यवर्गणामधिकृत्यैव कुर्वन्तीति । यत उदोरण-वेदन-निर्जरणानि कर्मद्रव्याणामेव भवन्तीत्यत उदीरणादिसूत्रेषु 'कम्मदव्यवग्गणमहिकिच्च' कर्मद्रव्यवर्गणामधिकृत्येत्युक्तम् । एवम् अणून बादरांश्च द्विविधान् पुद्गलान् 'ओवहिसु' इति अपावर्तयन् अपवर्तितवन्तः। अपवर्तन नाम-कर्मणां स्थित्यादेरध्यवसा यविशेषेण हीनतासंपादनम् , अपवर्तनेतिपदमुपलक्षणम् तेन उद्वर्तनमपि संगृहीतं दो प्रकार के पुद्गलों की उदीरणा करते हैं-वे ये हैं-एक सूक्ष्म और दूसरे स्थूल । “ सेसा वि एवं चेव" वक्ष्यमाण वेदन और निर्जरण ये दो भी चय और उपचय संबंधी सूत्रकी तरह ही जानना चाहिए। तात्पर्य यह है कि नारकजीव कर्मद्रव्यवर्गणा की अपेक्षा लेकर सूक्ष्म और स्थूल इन दो प्रकार के पुद्गलों को वेदन करते हैं और इन्हीं दो प्रकार के पुद्गलों की निर्जरा करते हैं। क्यों कि उदीरण, वेदन और निर्जरण ये कर्मद्रव्यों के ही होते हैं इसी कारण उदीरणादिसूत्रों में "कम्मदव्यवग्गण महिकिच्च" ऐसा पाठ रखा है। नारकीजीव कर्मद्रव्यवर्गणा के सूक्ष्म स्थूव दोनों प्रकार के पुद्गलोंका अपवर्तन करते हैं । तथा भविष्यत्काल में वे उनका अपवर्तन करेंगे, और भूतकाल में उन्हों ने इनका अपवर्तन किया था। यही बात “ ओवढेति " " ओवटिस्संति" और " ओव हिंसु" इन पदों द्वारा व्यक्त की गई है। अध्यवसायविशेष से कर्मों जी२९।। ४रे छ, (१) सूक्ष्म अने (२) स्थूस. 'सेसा वि एवं चेव" पाहीनां पहोनां વિષયમાંવેદન અને નિર્જરણ વિષે-પણ એમ જ સમજવું તેનું તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે-નારક જીવ કમંદ્રવ્યવગણની અપેક્ષાએ સૂમ અને સ્કૂલ, એ બે પ્રકારનાં પુદ્ગલોનું વેદન કરે છે અને એ જ બે પ્રકારનાં પુદ્ગલોની નિર્જરા કરે છે. भद्रव्यानु ी२, वेहन भने नि २४ थाय छे. ते ४ारणे ४ ' कम्मदव्ववग्गणहिकिच्च" मेवे। ५४ भूयो छे. मद्रव्यवान सूक्ष्म मने स्थूल બન્ને પ્રકારનાં પુદ્ગલોનું નારક છે અપવર્તન કરે છે, ભવિષ્યકાળમાં તેઓ તેનું અપવર્તન કરશે, અને ભૂતકાળમાં તેમણે તેમનું અપવર્તન કર્યું હતું. मे४ वात " ओवटुंति", "ओवहिःसंति” भने “ओवटिसुमा पो द्वारा व्यरत કરવામાં આવી છે. ખાસ અધ્યવસાય દ્વારા કર્મોની સ્થિતિમાં હીનતા લાવવી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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