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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.१ उ.१ सू० १० उत्पन्नपक्षस्य व्याख्या १७७ भवति, ततश्चोत्पन्न शब्दस्योत्पादोऽर्थों भवति, पक्षशब्दस्य ‘पक्ष परिग्रहे ' इति धातुपाठात् परिग्रहणं स्वीकारोऽर्थः, पक्षस्येत्यत्र तृतीयाथै षष्ठी, ततश्च उत्पा. दपक्षण उत्पादाङ्गीकारेण 'चलमाणे चलिए' इत्यादीनां चतुर्णा समानार्थत्वं संगतं भवतीति बोध्यम् , अथवा उत्पन्नपक्षस्येति उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूपेषु त्रिषु उत्पादारव्यवस्तुविकल्पस्य प्रतिपादकान्येतानि पदानीति। स च उत्पत्तिपर्यायः केवलज्ञानोत्पादरूप एव, यस्मात् कर्मविचारमस्तावे कर्मविनाशस्य केवलज्ञानो. उत्तर- इनमें जो समानार्थता हम कह रहे हैं वह उत्पन्नपक्ष को लेकर कह रहे हैं । उत्पन्न शब्द की निष्पत्ति उत्-उपसर्गपूर्वक “पद” धातुसे भूतकालमें "क्त" प्रत्यय करनेसे हुई है। “द" को 'न' और "क्त"के "त" को "न" हो जाता है। उत्पन्न शब्दका अर्थ उत्पाद होता है । “पक्ष परिग्रहे" के अनुसार पक्ष शब्द का अर्थ स्वीकार करना होता है । इस तरह उत्पन्नपक्ष का अर्थ उत्पादको अंगीकार करना, ऐसा हो जाता है। " उत्पन्नपक्षस्य " में जो षष्ठी विभक्ति हुई है वह तृतीया विभक्ति के अर्थ में हुई है अतः इसका तात्पर्य "उत्पाद को अंगीकार करने से "चलमाणे चलिए" इत्यादि चार पदों में समानार्थता संगत है" ऐसा हो जाता है । अथवा-उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य, ये तीन प्रत्येक सबस्तु के धर्म हैं सो इनमें से जो उत्पाद नामका वस्तु का धर्म है उस धर्मके ये चार पद प्रतिपादक हैं। यह उत्पत्तिरूप पर्याय केवलज्ञान के उत्पादरूप ही हैं, क्यों कि कर्मविचार के प्रस्ताव में कर्मविनाश के दो ઉત્તર–તેમાં જે સમાનાર્થતા કહી છે તે ઉત્પન્ન પક્ષની અપેક્ષાએ કહી છે. (उत्xपद्रक्त) उत् ७५सा पद्' धातुनी या भूटीन. ५छी भूतन क्त प्रत्यय साथी उत्पन्न १४ सने छ. 'द'ने 'न' भने 'त' 'त'ना 'न' थ तय छे. उत्पन्न हो म पाइन थाय छे. “पक्ष परिग्रहे"! मनुસાર પક્ષ શબ્દને અર્થ સ્વીકાર કરે થાય છે. આ રીતે “ઉત્પન્નપક્ષને अर्थ 'पाहने 400२ ४२वो' थाय छे. “ उत्पन्नपक्षस्य "भारे छी विमति થઈ છે તે ત્રીજી વિભક્તિના અર્થમાં થઈ છે. તેથી તેનું તાત્પર્ય “ ઉત્પાદન मी४२ ४२वाथी 'चलमाणे चलिए ' त्याहि या३ पहोम समानार्थता सगत छे" सेभ दाणे छे. અથવા-ઉત્પાદ, વ્યય અને પ્રૌવ્ય, એ ત્રણ પ્રત્યેક વસ્તુના ધર્મ છે. તેમને ઉત્પાદ નામને વસ્તુને જે ધર્મ છે તે ધર્મનું પ્રતિપાદન કરનારાં એ ચાર પદ . આ ઉત્પત્તિરૂપ પર્યાય કેવળ જ્ઞાનના ઉત્પાદનરૂપ જ છે. કારણ કે કર્મવિચારના પ્રસ્તાવમાં કર્મવિનાશનાં બે ફળ બતાવ્યાં છે. (૧) કેવળ भ०-२३ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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