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भगवती सूत्रे
श्रमणस्य भगवतो महावीरस्याऽदूरसामन्ते ऊर्ध्वजानुः अधः शिराः ध्यानकोष्ठोपगतः संयमेन तपसाऽऽत्मानं भावयन् विहरति ॥ ०७ ॥
टीका -' तेणं कालेणं इत्यादि ।
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'तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स' तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य ' जेट्टे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे ' ज्येष्ठोऽन्तेवासी इन्द्रभूतिनामा अनगारः, ज्येष्ठत्वमस्य संयमपर्यायेण सर्वप्रथमत्वात्, अन्तेवासी - शिष्यः, इन्द्रभूतिरेतन्नामकः, अनगारः - साधुः, स कीदृश: ? इत्याह' गोयमगोत्ते ' गौतमगोत्रः - गौतमं - गौतमाख्यं गोत्रं यस्य स तथा, 'सत्तुस्सेहे '
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वाली लब्धि के धारी थे । ऐसे वे इन्द्रभूति अनगार (समणस्स भगवओ महावीरस्स) श्रमण भगवान् महावीर के ( अदूरसामंते ) न अधिक दूर और न अधिक पास ( उडजाणू अहोसिरे) घुटनों को ऊँचा और शिर को नीचा कर (झाणकोट्ठोवगए) ध्यानरूपी कोठा में प्राप्त थे। उस समय वे संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए भगवान् महावीर के पास ( विहरइ ) रहते थे ।
टीकाके पदों का स्पष्टार्थ इस प्रकार से है - इन्द्रभूति को जो यहां ज्येष्ठ अंतेवासी कहा है उसका अभिप्राय यह है कि वे समस्त संघ के नायक थे और संयम पर्याय की अपेक्षा सर्वप्रथम थे । वे गृहस्थ नहीं थे किन्तु अनगार - मुनिअवस्थायुक्त थे । यह बात "अनगार" पद प्रकट करता है। मुनि होने पर भी वे निंदितगोत्र के नहीं थे किन्तु गौतमगोत्र
लघुवावाजी सम्धिना धारी हता. सेवा मेन्द्रिभूति अणुगार (समणस्स भगवओ महावीरस्स ) श्रमएणु भगवान भडावीरथी ( अदूरसामंते ) वधारे दूर पशु नहीं मने न पशु नहीं भेवी नग्या (उडूढजाणू अहोसिरे) घुटने या उरीने मने भाथाने नमावीने ( झाणकोट्ठोवगए ) ध्यानइयी अहामां मेठा हता. ते સમયે તેઓ પેાતાના આત્માને સયમ અને તપથી ભાવિત કરી રહ્યા હતા. श्या रीते तेथेो लगवान महावीर पासे ( विहरइ ) रहेता डा.
ટીકાના શબ્દોના ભાવા—ઇન્દ્રભૂતિને અહીં જ્યેષ્ઠ અંતેવાસી કહ્યા છે તેનું કારણ એ છે કે તેએ સમસ્ત સંઘના નાયક હતા. અને સંયમ પર્યાયની અપેક્ષાએ સૌથી પ્રથમ હતા. તેઓ ગૃહસ્થ ન હતા પણ અણુગાર–મુનિ પર્યાયથી યુક્ત હતા.
આ વાત ‘અણુગાર ’ પઢ દ્વારા બતાવી છે. મુનિ હતા એટલુંજ નહીં પણ તેએ નિતિ ગેાત્રના ન હતા પણ ‘ગૌતમ’ જેવા ઊંચ ગેાત્રના હતા. તેમના શરીરનું
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧