SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १ उ० १ सू०७ गौतमस्वामिवर्णनम् १३१ महातपाः घोरतपाः उदारः घोरः घोरगुणः घोरतवस्सीघोरब्रह्मचर्यवासी उच्छूटशरीरः संक्षिप्तविपुलतेजोलेश्यः चतुर्दशपूर्वी, चतुर्ज्ञानोपगतः, सर्वाक्षरसंनिपाती, संठिए) समचतुरस्र उनका संस्थान था। (वज़रिसहनारायसंघयणे) बजऋषभनाराच संहनन के वे धारी थे । (कणगपुलगणिघसपम्हगोरे) सुवर्णके लेशकी रेखा से उपमित पद्म कमलके किञ्जल्क के समान ये गौर वर्ण के थे । (उग्गतवे) बहुत अधिक उग्रतपस्वी थे। (दित्ततवे ) दीप्त तपवाले । (तत्ततवे) तप्त तप से युक्त थे। (महातवे) बृहत्तपस्या वाले थे । (घोरतवे) अति कठिन तप को करने वाले थे। (ओराले) उदार थे। (घोरे घोर--उत्कृष्टथे (घोरगुणे) जिनके मूलगुणादिकोंको अन्य जन उद्वहन करनेमें अपने आपको असमर्थ मानते थे ऐसे घोरगुणवाले थे। (घोरतवस्सी) दुष्करतपश्चरणशील थे। (घोरबंभचेरवासी) घोर-उत्कट ब्रह्मचर्य में निवास करने के स्वभाववाले थे। (उच्छूढसरीरे) संस्कार परित्याग के कारण जिन्होंने शरीर को छोड़सा रखा हो, ऐसे थे (संखित्तविउलतेयलेस्से ) विपुल तेजोलेश्या को जिन्होंने अपने शरीर के भीतर अन्तर्हित कर रखा था, ऐसे थे । (चोद्दसपुव्वी) चौदह पूर्व के पाठी थे (चउनाणोवगए) चार ज्ञान के धारी थे । (सव्वक्खरसन्निवाई) सर्वाक्षरसन्निपाती, अर्थात् एक अक्षर के ज्ञान से सब अक्षरों को जानने मगोवा ता. (वज्जरिसह-नारा य-संघयणे) ते १०ऋषमनाराय सडनन पायउता. (कणगपुलगणिघसपम्हगोरे) ४सोटी ५४०२ ५२ होरेसी सोनानी शेमावा , भान। ५२ततु समान तेस। गा२१ वा न उता. ( उग्गतवे) तेसो ५४ तपस्वी उता. (दित्ततवे) ते सत५ ता, मने (तत्ततवे) तत५थी युत उता. (महातवे) तो महान तपस्वी उता, (घोरतवे) मति ॥२-8न त५ ४२ना। उता, (ओराले ) SIR , (घोरे) ३।२ उता, (घोरगुणे) तेसो सवा २ गुणेवामा त तमना भूण गुणे। घश मन्य सो पाताने असमर्थ मानता उता. (घोरतवस्सी) तेस। धारत५२वी उता-मर्थात् २॥४२मा म त५ ४२ ना२। उता, (घोरबंभचेरवासी) धार कृष्ट प्रझययनुं पासन ४२वाना स्वभावामा उता, (उच्छूढसरीरे) तेमणे શારીરિક સંસ્કારને પરિત્યાગ કર્યો હોવાથી જાણે કે તેમણે શરીરને છેડી हाधु डाय मे सातु तु. (संखित्तविउलतेयलेस्से) विधुत तेजोश्याने तभणे पाताना शरी२नी म४२४ ४५वी भी ता. (चोदसपुव्वी) तेस। यो पूना ५४उता, (चउनाणोवगए ) या२ ज्ञानने धा२९५ ४२ना२ उता, (सव्वक्खरसन्निवाई)साक्षरसन्निपाती से अक्षर ज्ञानथी तमाम अक्षरोन શ્રી ભગવતી સુત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy