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________________ भावबोधिनी टीका. नारकादीनामवगाहनानिरूपणम् ९६३ है ? (गोयमा ! पंचविधे पण्णत्ते) हे गौतम ! पश्चविधं प्रज्ञप्तम्-हे गौतम ! तेजसशरीर पांच प्रकार का कहा गया है (एगिदियतेयसरीरे वि, ति, चउ० पंच०) एकेन्द्रियतैजसशरीरं द्वित्रि चतुष्पश्च०-एकेन्द्रियतैजसशरीर, दो इन्द्रियतैजसशरीर, तेइन्द्रियतैजसशरीर, चौइन्द्रियतैजसशरीर और पांच इन्द्रियतैजसशरीर इस प्रकार से प्रज्ञापनासूत्र के २१ एकवीसवें पद द्वारा कथित प्रकार के अनुसार यह सब कथन जानना चाहिये । (एवं जाव) एवं यावत् (गेवेजगस्स णं भंते देवस्स मारणंतियसमुग्घारणं समोह यस्स समाणस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?) अवेयकस्य खल भदन्त ! देवस्य मारणान्तिकसमुद्धातेन समवहतस्य समानस्य किं महतीशरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ?--हे भदंत ! अवेयकदेव के कि जब वे मारणांतिक समुद्धात करते हैं तब उनके तैजसशरीर की अवगाहना कितनी बड़ी होती है ? उत्तर-गोयमा ! सरीरप्पमाणमित्ता विक्खंभवाहल्लेण) हे गौतम ? शरीरममाणमात्राविष्कम्भवाहल्येन-हे गौतम ! विष्कंभ और बाहल्य की अपेक्षा तो वह शरीरप्रमाणमात्र है। तथा-(आयामेणं जहन्नेणं अहे जाव विजाहरसेढीओ, उक्कोसेणं जाव अहोलोइयग्गामाओ, उड़ जाव सयाई विमाणाई, तिरियं जाव मणुस्सखेत्तं) आयामेन जघन्येन घुछ ? ( गोयमा ! पंचविहे पति) हे गौतम ! पञ्चविधं प्रज्ञप्तम्हे गौतम ! तेस शरीर पाय २नु | छ. (एगिदिय तेयसरीरे वि, ति, चउ० पंच) एकेन्द्रिय तैजसशरीरं द्वि त्रि चतुष्पश्च०-मेन्द्रिय स शरी२, શ્રીન્દ્રિય તેજસ શરીર, તેઈન્દ્રિય તેજસ શરીર, ચૌરિન્દ્રિય તૈજસ શરીર અને પંચેન્દ્રિય તેજસ શરીર, આ પ્રમાણે પ્રજ્ઞાપનાસૂત્રના ૨૧ એકવીસમાં પદ દ્વારા थित शत प्रमाणे 24। समस्त ४थन समा. (एवं जाव) एवं यावत् (गेवेज्जगस्स णं भंते देवस्स मारणंतियसमुऽधाएणं समोहयस्स समाणस्स के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?) ग्रैवेयकस्य खलु भदन्त ! देवस्य मारणान्तिकसमुद्धातेन समवहतस्य समानस्य किंमहतीशरीरावगाहना प्रज्ञप्ता? હે ભદંત ! મારણાંતિક સમુદ્ધાત કરતી વખતે રૈવેયકદેવના તેજસ શરીરની અવ &l टली मोटी थाय छे ? (गोयमा! सरीरप्पमाणमित्ता विक्खंभवाहल्लेणं) हे गौतम ! शरीरममाणमात्रा विष्कम्भवाहल्येन-- गौतम ! qिozm अने पानी अपेक्षा ते शरी२५मा ४ य छे. तथा (आयामेणं जहन्नेणं अहे जाव विजाहरसेढीओ, उक्कोसेणं जाव अहोलोइयग्गामाओ, उड़े जाव सयाई विमाणाइ,तिरियं जाव मणुस्सखेत्तं)आयामेन जघन्येन अघो यावत् શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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