________________
९६२
समवायानसूत्रे शरीरं, नो अनृद्धिप्राप्तप्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकसंख्यातवर्षायुष्ककर्मभूमिजगर्भयुत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरमू-हे गौतम ! जो ऋद्धिप्राप्तप्रमत्तसंयत हैं उन्हीं के आहारकशरीर होता है, अनृद्धिप्राप्तप्रमत्तसंयत के नहीं (वयणाविभाणियबा) वचनान्यपिभणितव्यानि-वहां यह कथन संक्षेप से किया गया है। अतः इस विषय में और भी जो वक्तव्य हो वह संबंधित कर लेना चाहिये । ( आहारयसरीरे समचउरंससंठाणसंठिए ) आहारकशरीर समचतुरस्रसंस्थानसंस्थितम्-यह आहारकशरीरसमचतुरस्रसंस्थानवाला होता है। (आहारयसरीरस्स णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहना पण्णता) आहारकशरीरस्य खलु भदन्त ! किं महती शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ?-हे भदंत ! आहारकशरीर की अवगाहना कितनी विशाल कही गई है। (गोयमा ! जहण्णेणं देसूणा रयणी, उकोसेण पडिपुण्णा रयणी) हे गौतम ! जघन्यतः देशोना रत्निः, उत्कर्षण प्रतिपूर्णा रत्नि:-हे गौतम ! इस आहारकशरीर की अवगाहना जघन्य से कुछ कम रत्निप्रमाण है अर्थात्-बद्धमुष्टिहस्तप्रमाण है और उत्कृष्ट से पूर्णरत्निप्रमाण है। (तेयासरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) तैजसशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ?-हे भदंत ! तैजसशरीर कितने प्रकार का कहा गया. व्युत्क्रान्तिकमनुष्याहारकशरीरं, नो अनृद्धिमाप्तप्रमत्तसंयतसम्यगहष्टिपर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्कर्मभूमिजगर्भव्युत्क्रन्तिकमनुष्याहारकशरीरम् હે ગૌતમ ! જે ત્રાદ્ધિપ્રાપ્ત પ્રમત્ત સંયત હોય છે તેમને આહારક શરીર હોય छ. मनृद्धिात प्रमत्त सयतने तु नथी, (वयणा विभाणियवा) वचनान्यपि भनितव्यानि-मडी 241 ४थन सक्षिप्तमा युछ तो मा विषयने मनुसक्षाने मी ५ से १४तव्य होय तेने। डी देवो. (आहारयसरीरे समचउरंससंठाणसठिए) आहारकशरीरं समचतुरस्त्र संस्थानसंस्थितम्--41 माहा२४ शरीर सभयतु२खस स्थानवाणु राय छे. (आहारयसरीरस्स णं भंते ! के महालिया सरीरोगाहना पण्णत्ता ?)आहारकशरीरस्य खल भदन्त ! कि महतीशरीरावगाहना प्रज्ञप्ता ?-3 महन्त ! भाडा२४ शरीरनी गाना देसी भाटी छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं देणारयणी, उक्कोसेणं पडिपुण्णा रयणी) हे गौतम ! जघन्यतः देशोनारनिः,उत्कर्षेण प्रतिपूर्णा रत्नि:- गौतम ! આહારક શરીરની અવગાહના જઘન્યની અપેક્ષાએ એક નિપ્રમાણથી સહેજ ઓછી એટલે કે મુઠ્ઠી વાળેલા હાથ જેટલા પ્રમાણની છે અને ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાઓ પૂર્ણ निप्रभा छ (तेयासरीरे णं भंते ! कविहे पण्णते ? ) तैजस शरीरं खलु भदन्त ! कतिविध प्रज्ञप्तम् ?-3 मत ! तेस शरी२ 321 ४२नु
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર