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समवायाङ्गसूत्रे एवं द्वित्रिचतुरिन्द्रिया जीवा अपि विज्ञेयाः । पञ्चेन्द्रिया जीवास्तु नारकादि. भेदेत चतुर्विधाः । तत्र नारका रत्नप्रभादिपृथ्वीभेदात् सप्तविधाः। पञ्चन्द्रियतियश्चोजलस्थलखेचर भेदात्त्रिविधाः । तत्र जलचराः पञ्चविधाः-मत्स्यकच्छपग्राहमकरशिशुमारभेदात् । तत्र-मत्स्याः श्लक्षणमत्स्यादिभेदादनेकविधाः। कच्छपा अस्थिकच्छ मांसकच्छपभेदाद् द्विविधाः । ग्राहा दिलि-वेष्टक-मग्दु पुलकसीमाकारभेदात् पञ्चविधाः । मकरा मत्स्यविशेषास्ते च शुण्डामकरकरिमकरभेदाद् द्विविधाः। शिशुमारास्त्वेकविधाः। स्थलचरास्तु चतुष्पदपरिसर्पभेदाद् द्विविधाः। तत्र चतुष्पदा एकखुरद्विखुरगण्डीपदसनवपदभेदाच्चतुर्विधाः । एते च क्रमेण अश्व से दो प्रकार के हैं। सूक्ष्म और बादर भी पर्याप्त और अप्ति के भेद से दोदो प्रकार के हैं। इसी तरह द्वीन्द्रिय, तेन्द्रिय, चतुरिन्द्रि जीव भी पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से दो दो प्रकार के होते हैं। पंचेन्द्रिय जीव नारक आदि के भेद से चार तरह के हो जाते हैं। इनमें जो नारकी जीव हैं वे रत्नप्रभा-पृथिवी आदि के भेद से सात प्रकार के हैं। पंचेन्द्रिय तियश्च जलचर. स्थलचर और खेचर के भेद से तीन तरह के हैं। जलचर पंचेन्द्रिय जीव मत्स्य, कच्छप, ग्राह, मकर और शिशुमार के भेद से पांच प्रकार के हैं। मत्स्य भी श्लक्ष्णमत्स्यादि के भेद से अनेक विध हैं। अस्थिकच्छप
और मांसकच्छप के भेद से कच्छप दो प्रकार के हैं। दिलि, वेष्टक, मद्गु. पुलक और सीमाकार के भेद से ग्राह पांच प्रकार के है। शुण्डामकर और करि मकर के भेद से मकर के दो प्रकार हैं। शिशुमार एक ही तरह के होते हैं। चतुष्पद, और परिसर्प के भेद से स्थलचर तिर्यच दो तरह के होते हैं। इनमें जो चतुष्पद हैं वे एकखुर, द्विखुर, गण्डीपद और सनઅને બાદરના પણ પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત એવા બે બે ભેદ છે એજ રીતે દ્વીન્દ્રિય, તેન્દ્રિય, અને ચતુરિન્દ્રિય જીવોના પણ પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત બે બે ભેદ પડે છે પંચેનિદ્રય જીના નારકી આદિ ચાર પ્રકાર છે તેમાંના જે નારકી છવો છે તે રત્નપ્રભાપૃથ્વી આદિના ભેદથી સાત પ્રકારના છે. પંચેન્દ્રિય તિય ચના જળચર,
સ્થળચર અને ખેચર, એવા ત્રણ ભેદ છે. જલચર પંચેન્દ્રિય જીના પાંચ પ્રકાર છે(१) मत्स्य. (२) ४२७५, (3) श्रा, (मगर सने (५) शिशुभार. मत्स्यना १६મસ્ય આદિ અનેક ભેદ છે. કચ્છપના બે ભેદ છે-(૧) અ થક૭૫ અને (૨) માંસ ४२७५ पाना पांय ४५२ छ-(१) Ele (२) वेष्ट४ (3) भY (४) पुस मने (५) सीमा ४१२. भा२ना में प्रा२ छ-(१) शुमार सने ( २) ४रिभा२. शिशु. માર એક જ પ્રકારના હોય છે. સ્થળચર તિયચના બે ભેદ છે-(૧) ચોપગાં અને (२) परिसपतमाना यापातिय याना यार ले छ (१) मरीजi, (२) मे भरी
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર