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भावबोधिनी टीका. राशिद्वयस्वरूपनिरूपणम्
९०३ गोगजसिंहादयो बोध्याः। परिसर्पा द्विविधाः-उरः परिसर्पा भुजपरिसश्च । तत्रउरः परिसा अह्यजगराशालिकमहोरगभेदाच्चतुर्विधाः। तत्रापि दर्वीकरमुकुलिभेदा. दहयो द्विधा । खेचराश्चतुर्दा-चर्मपक्षिणो लोमपक्षिणः समुद्गपक्षिणो विततपक्षिणश्च । तत्रादितो द्विप्रकाराः पक्षिणो बल्गुलीहंसादयः । अतोऽन्यभेदाः पक्षिणो द्वीपान्तरेष्वेव भवन्ति । एते सर्वे पञ्चेन्द्रियतिर्यश्च: । मनुष्याश्च द्विधा संमूछिमा गर्भव्युत्क्रान्तिकाश्च । तत्र संमूच्छिमा नपुंसका एव । गर्भव्युत्क्रान्तिकास्तु त्रिधाकर्मभूमिजाः, अकर्मभूमिजाः, अन्तरद्वीपजाश्च । एते सर्वेऽपि त्रिलिङ्गाः। तत्र कर्मभूमिजा द्विधा-आर्या म्लेच्छाश्च । आर्या अपि द्विधा-ऋद्धिप्राप्ता इतरे च । तत्र खपद इस प्रकार से चार तरह के होते हैं। अश्व एक खुर वाला, गाय दोखुर वाली, गज गण्डीपद वाला, और सिंहादिक नख युक्त पद वाला जानवर है। उरः-परिसर्प और भुजपरिसर्प के भेद से परिसर्प दो प्रकार के होते हैं। अहि, अजगर, आशालिक और महोरग के भेद से उरः परिसपें चार प्रकार के हैं। इनमें जो अहि उरः सर्प हैं वे दर्वीकर और मुलि के भेद से दो तरह के हैं। चर्मपक्षी, लोमपक्षी, समुद्गपक्षी और विततपक्षी इस तरह खेवर तिर्यच ४ प्रकार के हैं। बगुली हँस आदि जो पक्षी हैं ये चर्मपक्षो लोमपक्षी हैं। इनसे भिन्न जो समुद्गपक्षी और विततपक्षी हैं वे द्वीपान्तरों में अढारद्वीप के बाहर ही होते हैं। ये सब पंचेन्द्रिय तिर्यच हैं। संमूच्छिम और गर्भज के भेद से मनुष्य दो प्रकार के होते हैं। इनमें जो संमूर्छिम मनुष्य होते हैं वे तो नियमत: नपुंसक ही होते हैं। गर्भज मनुष्य, कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तद्रीपज इस प्रकार से तीन प्रकार के होते हैं। ये सब तीनों लिङ्गो वाले होते हैं। इनमें कर्मभूमियां मनुष्य आर्य और म्लेच्छ के वामi, 3) 31५६ मिने (४) सन ५५६ (पगेनहारमi) घडी मे भरीवाना, गाय બે ખરીવાળી, હાથી ગંડી પદવાળે અને સિંહ વગેરે નારયુકત પગવાળાં જાનવર છે परिसपना मे २ छ-०२:५रिस५ (१) मने सुन पारसस (२) ६२: पारसना यार ५२ छ-(१) मडि (२) २४॥२, (3) माशालि मन (१) भारतभन! महि ઉર પરિસર્પના બે ભેદ છે- દર્પીકર અને મુકુલિ. બેચર તિર્યંચના ચાર પ્રકાર છે(१)यभ पक्षी, (२)सोमपक्षी (3)समुद्रपक्षी मन (४) विततपक्षी. मni, साहि પક્ષીઓ ચર્મપક્ષી લેમપક્ષી છે. સમુદ્રપક્ષી દ્વીપાન્તરમાં જ હોય છે. એ બધાં પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ છે. મનુષ્યના બે પ્રકાર છે-સંમૂચિઠ્ઠમ અને ગર્ભાજ, તેમાંના જે સમુચ્છિ મ મનુષ્ય હોય છે તેઓ તો નિયમથી જ નપુંસક હોય છે. ગર્ભજ મનુધ્યના ત્રણ પ્રકાર છે-કર્મભૂમિજ, અકર્મભૂમિજ અને અન્ત દ્વીપજ છે બધા ત્રણે લિંગવાળા (જાતના) હોય છે. તેમાં કર્મભૂમિયા મનુષ્યના આય અને સ્વેર છ એવા બે
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર