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________________ ८४० समवायाङ्गसूत्रे भेद परिकर्म का क्या स्वरूप में (परिकम्मे-सत्तविहे पण्णत्ते) परिकर्म सप्तविंधं प्रज्ञप्तम्-सूत्रादि को ग्रहण करने की योग्यता का संपादन करना इसका नाम परिकर्म है। इस परिकर्म का हेतु होने से शास्त्र का नाम भी परिकम हो गया है। वह परिकम सात७ प्रकार का है। (तं जहा) तद्यथा-उसके वे सात प्रकार ये हैं-(सिद्ध सेणिया परिकम्मे१) सिद्ध श्रणिकापरिकम-(मणुस्स सेणियापरिकम्मे२) मनुष्यश्रेणिका परिकर्म (पुट्ठसेणिया परिकम्मे३) पृष्ठ श्रेणिकापरिकर्म, (ओगाहणसेणियापरिकम्मे४ ) अवगाहन श्रेणिकापरिकर्म, (उपसंपन्ज-सेणियापरिकम्मे५) उपसंपद्यश्रेणिका परिकर्म, (विप्पजहसेणियापरिकम्मे६) विप्रजहच्छ्रेणिकापरिकर्म, (चुआचु असेणियापरिकम्मे७) च्युताच्युतश्रेणिकापरिकर्म । (से किं तं सिद्धसेणिया. परिकम्मे) अथ किं तत् सिद्धश्रेणिका परिकर्म-हे भदंत! सिद्ध श्रेणिकाप. रिकर्म का क्या स्वरूप है ? हे शिष्य-(सिद्ध सेणिया परिकम्मे चोहसविहे पण्णत्ते) सिद्ध श्रेणिकापरिकम चतुर्दशविधं प्रज्ञप्तम्-सिद्ध श्रेणिकापरिकर्म चौदह १४ प्रकार का है (तं जहा) तद्यथा-वे प्रकार ये हैं-(माउयापयाणि१) मातृकापदानि-मातृकापद, (एगट्ठय पयाणि२) एकाथिकपदानि-एकार्थिक पद (पाओट्टपयाणि३) पादौष्ठपदानि-पादौष्ठपद, (आगासपयाणि) आका महन्त ! शिवान! प२ि४म नामना पडे। मेनु ८१३५ छ ? (परिकम्मे सत्तविहे पण्णत्ते) परिकम सप्तविधं प्रज्ञप्तम्-सूत्र हिने अऽ ४२वानी योग्यता પ્રાપ્ત કરવી તેનું નામ પરિકર્મ છે. તે પરિકમના હેતુરૂપ હોવાથી શાસ્ત્રનું નામ ५२५ परिभ २४ गयु छ. ते परिभ ना सात प्र४१२ छे (तं जहा) तद्यथाते सात २ ॥ प्रमाणे छे-(सिद्धसेणिया परिकम्मे) (१) सिद्ध श्रेलिनु प२४ (मणुस्स सेणिया परिकम्मे) (२) मनुष्य श्रेणुिनु प२ि४भ', (पुठसेणिया परिकम्म) श्रेणिनु परिभ (ओगाहण लेणियापरिकम्मे) अवगाहन श्रेणुिनु प२ि४ उवसपज्जसेणिया परिकम्मे ) 3५५ श्रेशिनु पा२४, (विप्पजह सेणिया परिकम्मे विश्रेशिनु प२ि४ भने ( चुआचुअसेणिया परिकम्मे ) (७) श्युत। श्युत श्रेणिनु परिभ', (से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे) अथ किं तत् सिद्धश्रेणिका परिकर्म ?-3 महन्त! सिद्वश्रेणुिना प२ि४ २१३५ हेछ? शिष्य ! (सिद्धसेणिया परिकम्मे चोदसविहे पण्णत्ते ) सिद्ध श्रेणिका परिकर्म चतुर्दशविधं पज्ञप्तम्-सिद्ध श्रे!ि प२ि४ यो ४२४ छ. (तंजहा) तद्यथा-ते प्रा२। २॥ प्रमाणे छे-(माउयापयाणि) मातृकापदानि[१] भातृप, (२) एगट्ठियपयाणि-एकार्थिकपदानिः-४ाथि: पहो, [3] (पात्रोढपयाणि) पादौष्ठ पदानि-पाls ५४, (४) (आगासपयाणि) आकाश શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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