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भावबोधिनी टीका. द्वादशाणस्वरूपनिरूपणम् संखेज्जा पाहुडपाहुडा, संखेजाओ पाहुडियाओ संखेजा पाहुडपाहुडियाओ, संखेजाइं पयसयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ताई। संखेजा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविनंति पण्णविज्जति परूविजंति दंसिर्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जंति, से एवं आया। एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ६। से तं दिट्रिवाए, से तं दुवालसंगे गणिपिडगे ॥सू. १८५॥ ____ अब सूत्रकार प्रवचन पुरूष का जो बारह वां अंग दृष्टिवाद है उसका कथन करते हैं
शब्दार्थ-(से कि तं दिठिवाए) अथ कोऽसौ दृष्टिवादः-हे भदन्त! दृष्टिवाद का क्या स्वरूप है? उत्तर-(दिठिवाएणं) दृष्टिवादे खलु-हे शिष्य ! दृष्टिवाद में-समस्त मतों का अथवा समस्त नयरूप दृष्टियो का जिसमें कथन है ऐसे बारहवें अंग में (सव्वभावपरूवणा आघविजइ) सर्वभावारूपणा आख्यायते-जीवादिक समस्त पदार्थों की अथवा धर्मास्तिकायादिकों की प्ररूपणा की गई हैं (से-समासओ पंचविहे पण्णत्ते) स समासतः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः-वह दृष्टिवाद संक्षेप से पांच प्रकार का कहा गया है। (तं जहा) तद्यथा-वे पांच प्रकार ये हैं (परिकम्मं सुत्ताई पुल्पगय अणुओगो चूलिया) परिकर्म१ स्त्राणि पूर्वगतं३ अनुयोगः४ चूलिकाः५(से किं तं परिकम्मे) अथ किं तत् परिकर्म-हे भदन्त ! दृष्टिवाद का प्रथम
હવે સૂત્રકાર પ્રવચન પુરુષનું દષ્ટિવાદ નામનું બારણું અંગ છે તેનું વર્ણન કરે છે
शहाय-(से किं तं दिहिवाए)अथ कोऽसौ दृष्टिबादः-डे महन्त ! हष्टवाहनु २१३५ उछ ? (दिट्टिवाए णं)दृष्टिवादे खल-3 शिष्य ! दृष्टिपामा समस्त મનું અથવા સમસ્ત નયરૂપ દુષ્ટિનું જેમાં કથન કર્યું છે એવા બારમાં અંગમાં (सयभावपरूवणा आघविज्जइ) सर्वभाबप्ररूपणा आख्यायते--04 समस्त पहायानी अथवा पस्तिशय माहिनी प्र३५९॥ ४२वामां मावी छे. (से समासओ पंचविहे पण्णत्ते) स समासतः पञ्चविध; प्रज्ञप्तः-ते टिपा सक्षिप्तमा पाय अाफ्नो ४ छ. (तंजहा) तद्यथा-ते पांय 4t२ नीचे प्रमाणे छे-(परिकम्म सुत्ताई पुव्वगयं अणुओगो चूलिया) (१) परिकर्म, (२) सूत्राणि, (३)पूर्वगत, (४) अनुयोगः, (५) चूलिकाः (से किं तं परिकम्मे) अथ किं तत् परिकर्म
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર