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________________ मावबोधिनी टीका. एकादशाङ स्वरूपनिरूपणम् पापफलविपाकस्वरूपमाह-'वहवसणविणासनासाकन्नुडंगुडकर चरणनहच्छेयण-जिन्भच्छेयण-अंजणकडग्गिदाहायचलण मलण फालण उल्लंबण सूललयाल उडलद्विभंजणतउसी सगतत्त ते लकलकलअहि सिंचण कुंभिपागकंपण थिरबंधण वे हवज्झ कत्तणपइभयकरकरपल्लवणाइदारुणाणि' 'वध वृषण- विनाश- नासाकर्णोष्ठाङ्गुष्ठ-करचरणनरवच्छेदनजिह्वाच्छेदनाञ्जनकटाग्निदाह - गजचलन-मलन - फालनोल्लम्बन - शूल लता लकुट - यष्टिभञ्जन - त्रपु - सीसकतप्ततैल - कलकलाभिषिञ्चनकुम्भीपाक - कम्पन- स्थिरबन्धन - वेधवध्य-कर्तनप्रतिभयकरकर प्रदीपनादिदारुणानि ' तत्र 'वह' वधः = खड्गादिभिश्छेदनम्, 'वसणविणास' वृषणविनाशः- वृषणस्य = अण्डकोशस्य विनाशः- वर्द्धितकरणमिति यावत् 'नासाकन्नुहंगुडकर चरणन हच्छे यण' नासावर्णोष्ठ एकरचरणनखच्छेदनमू-नासा= नासिका - कर्णौ = प्रसिद्धौ, ओष्ठौ=प्रसिद्धों, अष्ठे = प्रसिद्धे, करौ = हस्तौ चरणौ - नखाः, एतेषां छेदनं, तथा 'जिन्भच्छेयण' जिह्वाच्छेदनम्- 'अंजण' अञ्जनंतप्तायः शलाकानां नेत्रे प्रक्षेपणम्, 'कडग्गिदाह' कटाग्निदाहः कटानां विदलकटानांवंशादिखंडानां योऽग्निः स कटाग्निस्तेन दाहः वंशादि खण्डैः पापिनमाच्छाद्य तत्राग्नि संयुक्ष्य पापिनः प्रज्वालनमू 'गयचलणमलण' गजचलनमलनम् - गजसंचारणेन पापिनामङ्गोपाङ्गानां चूर्णाकरणम्, 'फालण' फालनं - शरीरविदारणम्, 'उल्लंगण' उल्लम्बनं - वृक्षशाखादावुद्बन्धनम्, तथा - 'मूललयालउडलद्विभंजण' शूललतालकुट कर्मों का फलरूपविपाक किस २ रूप में होता है इसी बात को 'बहवसण' इत्यादि पदों द्वारा स्पष्ट करते हैं - खङ्ग आदि द्वारा छेदन किया जाना, अण्डकोशों का विनाश किया जाना, नाक, कान, ओष्ठ, अंगुष्ठ हाथ, पैर और नखों का छेदा जाना, जिह्वा का काटा जाना, तपी हुई लोहे की शाईयों द्वारा आंखों का फोडा जाना, वंश आदि की लकडियों द्वारा आच्छादित किये जाकर अन्य हत्यारे पुरुषों द्वारा जीते जी जला दिया जाना, हाथी के पैरों नीचे दबाकर शरीर के अंग उपांगों का चूर २ करवा देना, शरीर का विदारित होना, वृक्ष की शाखाओं पर बांधकर लटका दिया जाना, शूलसे एक प्रकार के शस्त्र से, लतां छे. हवे सूत्रार पायाभना इस विधा ठेवो होय छे ते वात "वहवसण" આદિ પદે દ્વારા બતાવે છે-ખડગ આદિ દ્વારા છેદન, અડકેશેાના વિનાશ, નાક, अन, होड, यांगणां, हाथ, यञ मने नमनुं छेडन, निल अभी नामवानुं, तथाવેલા સળિયા દ્વારા આંખ ફાડવાનુ, વાંસ આદિનાં લાકડાથી ઢાંકી દઇને અન્ય હત્યારાઓ દ્વારા જીવતા સળગાવી નાંખવાનું, હાથીના પગ તળે કચરીને અંગ ઉપાંગના ચૂરેચૂરે કરાવવાનુ, શરીરને વિદ્વારવાનું, વૃક્ષાની શાખાઓ પર લટકાવવાનુ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર ८२५
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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