________________
समवायाङ्गसूत्रे
दुःखविपाक और दूसरा सुखविपाक । (तस्थ णं) तत्र खलु इनमें ( दसदुहविवागाणि) दशदुःखविपाका :- दशदुःखविपाक का अध्ययन हैं और (दस सुहविवागाणि दशमुख विपाकाः- दशसुख विपाक का अध्ययन हैं। (से कि तं - दुहविवागाणि) अथ के ते दुःखविपाकाः ? - हे भदन्त ! वे दुःखविपाक क्या है ? उत्तर - (दुहविवागेसु णं) दुःखविपाकेषु खलु - दुःखविपाक में (दुहविवागाणं णगराई) दुःख विपाकानां नगराणि - दुःखफल भोक्ताओं के नगरों का (उज्जाणाई) उद्यानों का, (चेइयाई) चैत्यानि - व्यन्तरायतनों का, (वणसंडाई) वनषण्डाः - वनखण्डों का (रायाणो) राजानः - राजाओं का, ( अम्मापियरो) अम्बापितरः- मातापिताओं का, (समोसरणाई) समवसरणानि - समवरणों का, ( धम्मायरिया) धर्माचार्याः- धर्माचार्यों का, (धम्मकहाओ) धर्मकथा धर्मकथाओं का, (नगर गमणा इं) नगरगमनानि - गौतमस्वामी का भिक्षा के लिये नगर में जाना, (संसारपबंधे) संसारबन्धः - संसार का विस्तार (दुहपरंपराओ य) दुःखपरंपराश्च दुःखों की परम्पराये अथवा - (संसारपबंधे दुहपरंपराओ य ) संसारप्रबन्धे दुःखपरम्पराश्च भवोपग्राहि कर्मों के बंध होने पर होने वाली दुःखपरम्पराये इस आगम में ( आघविज्जति) आख्यायन्ते - कथन किया गया है । ( से तं दुहविवागाणि) ते एते दुःखविपाकाः - यही दुःखविपाक सुहविवागे चेव ) दुःखविपाकचैव सुखविपाक चैव-- (१) दुविधा अने (2) yulaus (a) az ag-àui (cagefazınıfo) zag:afaपाका :- दुःविद्यानां इस अध्ययन छे भने (दस सुहविवागाणि) दश सुखविपाका::- इस अध्ययन सुय्यविप उन छे. (से किं तं दुहविवागाणि) अथ के ते दुःखविपाकाः ? डे लहन्त! ते दुःखविपाउनु स्व३५ ठेवु छे ? उत्तर(दुहविवासु णं) दुःखविपाकेषु खलु - हुः भविप उभ ( दुहविवगाणं णगराई ) दुःखविपाकानाम् नगराणि-दुः पविचाङ लोगवन रामना नगरीनु (चेइयाई) चैत्यानि - व्यन्तरायतनानु, (वगसंडाई) वनषण्डा : - वनडे (रायाणो) राजानः- भानु ( अम्मापियरो) अम्बापितरः- भातापिताओनु, (समो सरणाई) समवसरणानि - सभवसरोनु, (धम्मायरिया) धर्माचार्याः- धर्माया
T
' (धम्मकाओ) धर्मकथाः - धर्मधातु, (नगरगमणाई ) नगरगमनानि - गौतमस्वामी लिक्षाने भाटे नगरमा गमननु, (संसारपबंधे) संसारप्रबन्धःसंसारना विस्तारनु', (दुहपरंपरा य) दुःखपरम्पराश्च-मने होनी परंपराओ। (संसारबंधे दुहपरंपराओ य) संसारप्रबन्धे दुःख परंपराश्च भवेोपही उभेना अंध मंबंध ता लोगववानी हु:मयर परागनु (आघविज्जंति) आख्यायन्ते - उधन रायु छे. (से तं दुहविवागाणि) ते एते दुःखविपाकाः - दुःध्यविद्याउनु
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
८१०