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भावबोधिनी टीका. एकादशाङ्गस्वरूपनिरूपणम् का स्वरूप है। (से कि तं मुहविवागाई) अथ के ते सुखविपाकाः?-सुखविपाक का क्या स्वरूप है ? उत्तर-(सुह विवागेलु णं) सुखविपाकेषु खलुसुखविपाक में अर्थात सुखविपाक वाले अध्ययनों में (मुह विवागाणं नगराई) सुखविपाकानां नगराणि-सुखफल भोगनेवालों के नगर,(उजाणाई) उद्यानानि उद्यान, (चेइयाई )चैत्यानि-चैत्य, (वणसंडाई) वनषण्डाः वनखंड (रायाणों) राजानः-राजा, (अम्मापियरो) अम्बापितर:-मातापिता, (समोसरणाइ) समवसरणानि-समवसरण, (धम्मायरिया) धर्माचार्या:-धर्माचार्य, (धम्मकहाओ) धर्मकथा:-धर्मकथाएँ, ( इहलोइयपरलोइयइडिविसेसा) ऐहलौकिकपारलौकिकऋद्धिविशेषाः-इह लोक संबंधी और परलोक संबंधी ऋद्धिविशेष, (भोगपरिचाया) भोगपरित्यागा:-भोगपरित्याग, (पव्वज्जाओ) प्रव्रज्या:-प्रव्रज्याएँ, (सुयपरिग्गहा) श्रुतपरिग्रहा:-श्रुताध्ययन, (तवोवहाणाई) तपोपधानानि-विशिष्ट तपस्याएँ, (परियाया) पर्यायाः-पर्यायें, (पडिमाओ) प्रतिमाः-प्रतिमाएँ, (संलेहणाओ) संलेखनाः-संलेखना, (भत्तपञ्चक्खाणाई) भक्तप्रत्याख्यानानि-भक्तप्रत्याख्यान,(पाओवगमणाई)पादपोपगमनानि पादपोपगमनसंथारा, (देवलोगगमणाई) देवलोक गमनानि-देवलोकों में उत्पत्ति, (सुकुलपञ्चायाया) सुकुल प्रत्यायातानि-देवलोक से चवकर सुकुल में जन्ममे प्रमाणेनु २१३५ छ. (से किं तं सुहविवागाई) अथ के ते सुखविपाका:सुमवियाउनु २१३५ छ ? उत२-(मुहविवागेसु णं) सुखविपाकेषु खलुसु५ विभां-मेटये सुविsai मध्ययनमा (मुहविवागाणं नगराइ) सुखविपाकानां नगराणि-सुविा (सुम) सोनारामान नगनु, (उज्झाणाइं) उद्यानानि-धानानु', (चेइयाइं) चैत्यानि-थैत्यानु, (वणसंडाई) वनषण्डाः-वनमानु, (रायाणो) राजानः-२०मानु, (अम्मापियरो) अम्बा. पितरः-मातापितानु', (समोसरणाई) समवसरणानि-समवस२५नु , (धम्मायरिया) धर्माचार्या:-मायायानु, (धम्मकहाओ) धर्मकथा:-यथा मानु, (इहलोइयपरलोइयइनिविसेसा) ऐहलौकिकपारलौकिकऋद्धिसिशेषाः-मा भने परोनी (पशिष्ट ऋद्धियातु', (भोगपरिचाया) भोगपरित्यागाः-Atul परित्यागनु, (पव्वजाओ) प्रव्रज्याः-प्रया (हीक्षा) नु, (सुयपरिग्गहा) श्रुतपरिग्रहाः-श्रुताध्ययननु,(तवोवहाणाई) तपोपधानानि-विशिष्ट तपस्या यानु, (परियाया) पर्यायाः-पर्यायानु, (पडिमाओ)प्रतिमाः-प्रतिभासानु',(संलेहणाओ) संलेखनाः-मनानु, (भत्तपचक्खाणाई) भक्तप्रत्याख्यानानि-मतप्रत्याध्यानानु, (पाओवगमणाई) पादपोपगमनानि-
पापमान सयारानु, (देवलोगगमणाई) देवलोकगमनानि-
हेमा उत्पत्तिनु, (सुकुलपञ्चायाया) सुकुल
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર