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भावबोधिनी टोका. नवमानस्वरूपनिरूपणम्
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परिषदा (जिणसमीपं) जिनसमीपे-जिस प्रकार से भगवान् के पास गई है (पाउब्भावा य) प्रादुर्भावाश्च-यह बात भी इसमें उसी प्रकार से स्पष्ट की गई है। (जह य) यथा च-जिस प्रकार से (जिणवरं-उवासंति) जिनवरं उपासते-भगवान् की सेवा भक्ति करते हैं (लोगगुरु) लोकगुरुः-तीनों लोको के गुरु. जिन भगगन (अमरनरसुरगणाणं जह य-परिकहेइ धम्म) अमरनरासुरगणानां यथा च परिकथयति धर्मम्-अमर-वैमानिक देव, नरचक्रवति आदि, असुर-भवनपति आदि, उपलक्षण से व्यन्तर एवं ज्योतिषीदेव-इस सब को धर्म का उपदेश करते हैं। (सोऊण य तस्सभासियं) श्रुत्वा च तस्य भापित-जिन भगवान के वचन सुन करके (अवसेस-कम्मक्सियविरता) अवशेषकर्मविषयविरत्ता-क्षीण प्राय कमवाले (जिन की भवस्थिति पक गई है) ऐसे भव्य लोग विषयों से विरक्त बनकर (जहा) यथाजिस प्रकार (धम्ममुरालं) धर्ममुदारं-उदार धर्म को-(बहुविहप्पगारं) बहुविधपकार-अनेक प्रकार के (तवं संयम चावि) तपः संयमश्चापि-तप और संयम (अन्भुति) अभ्युपयंति-प्राप्त करते हैं उन सबका इसमें वर्णन है जह बहूणि वोसाणि) यथा वहूनि वर्षाणि-बहुत वर्षतक (अणुचरित्ता) भनुष्यानी (परिमाणं) परिषदाम् परिषद (निणसमीपं) जिनसमीपे-3वी शते लापानी पासे ती ती (पाउम्भावाय) प्रादुर्भावाश्व-मे वातनु २५०टी ४२९१ ५५ तेमा ४यु छे. (जहय) यथा च-31 शेत तमा (जिणवरं उवासंति) जिनवरं उपासते-भगवाननी लत सेवा ४२ छ (लोगगुरु) लोकगुरु:-सिना शुरु लिनेश्वर समपान ( अमरनरासुरगणाणं जहय परिकहेइ धम्म) अमरनरासुरगणानां यथा च परिकथयति धर्मम्-भर-वैमानि देवा, न२-यपति' આદિ રાજાએ અસુર-ભવનપતિ આદિ, ઉપલક્ષણથી વ્યંતર અને તિવી દે, में मधानी समक्ष वी ते पापहेश माने, (सोऊण य तस्स भासियं) श्रुत्वा च तस्य भाषितं-नेन्द्र लापाननु प्रयन सामजान (अवसेसकम्म विसयविरत्ता ) अवशेषकर्मविषयविरक्ता-मना भनि। क्षय थायोछे मेवiજેમની ભવસ્થિતિ સમાપ્ત થઈ છે એવા ભવીજને વિષયેથી વિરકત થઈને (કદી धम्ममुराल) यथा धर्ममुदारं-3वी रीत हार भने, (बहुविहप्पगार) बहुविध पकार-मने४२i (तवं सयमं चा वि) तपः संयमश्चापि-त५ भने सयम (अब्भुवेति) अभ्युपयंति-- ४२ , मे मया ॥ Ani १एन छे. (जह बहणि वासाणि)यथा बहुनि वर्षाणि-gi | सुधी(अणुचरित्ता)अनु
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર