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समवायाङ्गसूत्रे
सैन्यरूव रिपुबल के नाश करने वाले अर्थात् सर्व प्रकार से परीषहों को जीतने वाले (तधदित्तचरितणाण सम्मत्तसारविविहष्पगारवित्थरपसत्थगुण संजुयाणं) तपोदीप्तचारित्रज्ञानसम्यक्तव-सारविविधप्रकारविस्तरप्रशस्तगुणसंयुतानाम्-तथा तप से प्रकाशित हुए ऐसे चारित्र, ज्ञान एवं सम्यक्तव से श्रेष्ठ अनेक प्रकार के विस्तृत और प्रशंसनीय उतम क्षमादि सद्गुणों वाले, (अनगारमहरिसीणं) अनगारमहर्षीणाम तथा अनगार महर्षी, (अणगारगुणाणं] अनगार गुणानाम्-अनगार के गुणों से संपन्न (उतमवरतवविसिट्ठणाणजोगजुत्ताणं ) उतमवरतपोविशिष्टज्ञानयोगयुक्तानाम्तथा श्रेष्ठ तपस्या से विशिष्ट ज्ञान एवं विशिष्ट-मन वचन काय के व्यापाररूप से युक्त ऐसे जिनशिष्य गणधरों का भी [बण्णओ] वर्णकःवर्णन इसमें किया गया है। (जह य) यथा च-जिस प्रकार से (जगहियं) जगद्धितं-जगत् का हितकारक (भगवओ) भगवतो-जिन भगवान का शासन है यह विषय भी उस प्रकार से उसमें व्याख्यात हुआ है। (जारिसा इडि विसेसा) यादृशा ऋद्धि विशेषाः-तथा अनुत्तरोंपपातिक देवों का जैसा ऋद्धिविशेष है-वह भी इसमें वर्णित हुआ है। (देवासुरमाणुसाणं) देवासुरमानुषाणा-तथा देव, असुर और मनुष्य संबंधी (परिसाणं) परिषदाम्पमद्दणाणं ) परीषहसैन्यरिपुबलप्रमर्दनानाम्---५२५६ सैन्य३५ी महिने ना॥४२॥२॥,-सवै ४।२॥ परीषडाने तनाl, (तवदित्त चरितणाणसम्मत्तसार विविहप्पगारवित्थरपसत्वगुणसंजुयाणं ) तपोदीप्तचारित्रज्ञानसम्यक्त्व
सारविविधप्रकारविस्तरप्रशस्तगुणसंयुतानाम्--तथा तपथी दीप्यमानी ચારિત્ર, જ્ઞાન અને સમ્યકવથી શ્રેષ્ઠ અનેક પ્રકારના વિસ્તૃત અને પ્રશંસનીય ઉત્તમ क्षमा सहशुवा , (अनगारमहरिसीणं) अनगारमहर्षीणाम्-तथा मार महषी, (अणगारगुणाणं) अनगारगुणानाम्-माना गुणवाणा, (उत्तमवरतवविसिट्ठणाणजोगजुत्ताणं ) उत्तमवरतपोविशिष्टज्ञानयोगयुक्तानाम्તથા શ્રેષ્ઠ તપસ્યા કરનારી, વિશિષ્ટજ્ઞાન અને વિશિષ્ટ મન વચન કાયના વ્યાપાર ३५ याराथी युत मे निशिष्य धनु ५९ (वण्णो) वर्णकः-पन PAI
मा छ. (जह य) यथा च- ४१२नु (जगहिय) जगद्वितं-तनु हित॥२४ हितकारक (भगवओ) भगवतो-fort माननु शासन छ, मेनु ५५ AL ATi qणुन ४२वामा पाव्यु छे. (जारिसा इाविसेसा) यादृशा ऋद्धि विशेषाः-तथा अनुत्त३।५५ति हेवोनी विशिष्ट ऋद्धिय पी छ, ते ५ तमा मतान्यु छ. (देवासुरमाणुसाणं) देवासुरमानुषाणां-तथा ३१, असुर, मने
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર