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________________ भावबोधिनी टीका. सूत्रकताङ्गस्वरुपनिरूपणम् वणायाःक्रियाया असंभवात्कर्तृसमवायिनी क्रियां वदन्ति । तथा कालनियतिस्वभावेश्वरात्मनां मध्ये कश्चित् कालस्य कर्तृत्वं मन्यते कश्चिनियते रित्येवमेषां मुख्यतः पञ्च भेदाः एते च अस्तित्ववादिनः । एतेषां मते जीवाजीवपुण्यपापावसंवरनिजराबंधमोक्षाख्याः नव पदार्थाः । स्वपरभेदाभ्यां नित्यानित्यविकल्पद्वयेन कालनियतिस्वभावेश्वरात्माश्रयणादशीत्युत्तरं भेदशतं क्रियाणां भवति। तदभेदा एवमवगन्तव्या:-अस्ति जीवः स्वतोनित्यः कालतः, अस्ति जीवः स्वत्तोऽनित्यः कालतः, अस्ति जीवः परतो नित्यः कालतः, अस्ति जीवः परतोऽनित्यः कालतः, इत्येवं कालेन सह चत्वारो भेदाः, एवं नियत्यादीनां मत में जीव अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव. संवर, निर्जरा बंध और मोक्षये नौ पदार्थ है। इन नौ पदार्थों के स्व और पर की तथा काल, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा इनकी अपेक्षा लेकर नित्य और अनित्यरूप विकल्पों के साथ २०-२० वीस-वीस भेद बन जाते हैं-जो इस प्रकार से हैं-(१) अस्ति जीवः स्वतो नित्यः कालत:, (२) अस्ति जीवः स्वतोऽनित्यः कालतः, (३) अस्तिजीवः परतो नित्यः कालतः (४) अस्ति जीवः परतोऽनित्यः कालतः-जीव है और वह स्व और काल की अपेक्षा नित्य है (१) जीव है और वह स्व और काल की अपेक्षा अनित्य है (२)जीव है और वह पर की तथा काल की अपेक्षा नित्य है(३) जीव है और वह पर की तथा काल की अपेक्षा अनित्य है। इसी तरह सेजीव है और वह स्व की तथा नियति की अपेक्षा नित्य है। जीव है और वह स्व की तथा नियति की अपेक्षा अनित्य है। जीव है और वह पर की अपेक्षा तथा नियति की अपेक्षा नित्य है। जीव है और वह स्वतथा नियति की अपेक्षा अनित्य है। इसी तरह से स्व और परके साथ नित्य और विकल्पों मनुसार १. ५०१, पुण्य, ५५, मालव, सर, विश, ७५, सने મોક્ષ એ નવ પદાર્થ છે, એ નવ પદાર્થોના સેવ અને પરની અપેક્ષાએ તથા કાળ, સ્વભાવ, ઈશ્વર અને આત્માની અપેક્ષાએ નિત્ય અને અનિત્યરૂપવિક૯ની સાથે ર૦-૨૦ पीस पास लेह थायछ.२ मा प्रम छ-(१) अस्तिजीवः स्वतो नित्यः कालतः छ, मने ते२१ अनेते ती अपेक्षा नित्य छे (२)अस्तिजीवः स्वतोऽ नित्य पालन:-02. मन ते आजनी अपेक्षा मनित्य छे. (3)अस्तिजीवः परतो नित्य कालतः- छे अनेते ५२ना तथा नी मपेक्षा नित्य छे.(४) अस्तिजीवः परतोऽ नित्यः कालत:-०१ छ भने पत्नी मने अपनी अपेक्षा अनित्य छे. (५) र પ્રમાણે જીવ છે અને તે સ્વની અને નિયતિની અપેક્ષાએ નિત્ય છે. (૬) જીવ છે અને તે સ્વની અને નિયતિની અપેક્ષાએ અનિત્ય છે (૭) જીવ છે અને તે પરની શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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