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________________ भावबोधिनी टीका प्रथमसमवाये आत्मस्वरूपनिरूपणम् सूत्रकृतम् २, स्थानम् ३, समवायः ४, विवाहप्रज्ञप्तिः ५, ज्ञाताधर्मकथाः ६, उपा सकदशाः ७, अन्तकृद्दशाः ८, अनुत्तरोपपातिकदशाः ९, प्रश्नव्याकरणम् १०, विपाकश्रुतम् ११, दृष्टिवादः १२ । तत्र खलु यत् तत् चतुर्थमङ्गं समवाय' इति 'आहिए' आख्यातम् , तस्य खलु अयमर्थः प्रज्ञप्तः, तद् यथा। सू. २॥ भगवता यदाख्यातं तदाह-'एगे आया' इत्यादि । मूलम्-एगे आया ॥ सू. १॥ ____टीका-'आया' आत्मा-जीवः, 'एगे' एक-एकत्वसंख्यावान् ,कथंचिदिति भावः । यद्यपि जीवस्य सिद्धसंसारिभेदेन द्वैदिध्याद् उभयरूपत्वमस्ति, यथाप्युपयोवह इस प्रकार से है-(आयारे १ सूयगडे २ ठाणे ३ समवाए ४ विवाहपन्नत्ती ५ णायाधम्मकहाओ ६ उवासकदसाओ ७ अंतगडदसाओ८ अणुनरोववाइदसाआ ९ पाहाबागरणं १० विवागसुयं ९१ दिठिवाए १२) आचोरांग १ सूत्रकृतांग २ स्थानांग३ समवायांग ४ विवाह प्रज्ञप्ति ५ ज्ञाताधर्मकथांग ६ उपासकशांग ७ अंतकृदशांग ८ अनुत्तरोपपातिकदशांग ९ प्रश्नव्याकरण १० विपाकश्रुत ११ और दृष्टिवाद १२ । (तत्थणं)इनमें (जे से) जो यह (चउत्थे अंगे) चौथा अंग (समवाए त्ति) 'समवाय' इस नाम से (आहिए) कहा गया है (तस्सणं) उसका (अयमट्ट) यह अर्थ (पण्णते) कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार ॥स. २॥ अब सूत्रकार उसी भगवान् द्वारा कथित प्रकार को प्रकट करते हैं-'एगे आया' इति । टीकार्थ--(ोया एगे) कथंचित्-किसी अपेक्षा से-जीव एक है। यद्यपि सिद्ध और संसारी जीव की अपेक्षा से जीव के दो प्रकार हैं तो भी उपयोan प्रमाणे छ- आयारे १, सूयगडे २, ठाणे ३ समवाए ४, विवाहपन्नती ५, णायाधम्मकहाओ ६, उवासकदसाओ ७, अंतगडदसाओ ८ अणुत्तरोववाइ दसाओ ९, पण्हावागरणं १० विवागसुयं ११ दिहिवाए १२) (१) मायाग, (२) सूतin (3) स्थानांग (४) सभवायांग, (५) [ववाहप्रज्ञात, (६) ज्ञाता थांग (७) Gपास४६in, (८) मत६in, (6) मनुत्त।पाति४२२ , (१०) प्रश या४२३१, (११) विपाश्रुत मन (१२) दृष्टिपाह. 'तत्थण तेसोमांथी 'जे से सारे 'चउत्थे अंगे' याथु म 'समवाए ति' 'समवाय' नामनु'आहि ए' डेस छ. 'तस्सणं तेन। 'अयम?' 41 42 'पण्णत्ते' हे छे. 'तं जहा' ते अथ° मा - પ્રમાણે છે કે સૂ. ૨ | - वे सूत्रा२ लगवान द्वारा अथित ते पथ प्रगट ४२ छ-"एगे आयाति री:-'आया एगे समुष्टियता छ. सिंद्ध भने संसारी જીવની અપેક્ષાએ જીવના બે પ્રકાર છે, છતાં પણ ઉપયોગની દષ્ટિએ જોતાં તેમનામા શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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