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________________ भावबोधिनी टीका. एकोनविंशतिसमवाये एकोनविंशतिज्ञाताध्ययनादि निरूपणम् २४१ धारिणो, तदुदाहरणापलक्षित मल्लिज्ञातम् । (९) 'मागंदी' माकन्दी-अत्र माक न्दीशब्देन माकन्दीदारको गृह्यते, तन्नाम्ना प्रसिद्ध माकन्दोज्ञातमिति माकन्दीदारकज्ञातमित्यर्थः । (१०) 'चंदिमाइय' चान्द्रिकः-चन्द्रोदाहरणपतिपादकस्वाचान्द्रिकज्ञातम् । (११) 'दावदवे' दावद्रचः-स्वनामख्यातः समुद्रतटस्थो वृक्षविशेषः, तदुपलक्षितं दावद्रवज्ञातम् । (१२) 'उदगणाए' उदकज्ञातम्-उदकं नगरपरिखाजलम्, तदुदाहरणेन पुद्गलस्वभावप्रतिपादकत्वाद् ज्ञातम्-उदकज्ञातम् । (१३) 'मंडुक्के' मण्डूका भेक-नन्दमणिकारजीवः, तच्चरित्रोपलक्षितमध्ययन मण्डूकज्ञातम् । (१४) 'तेत्तलि' तेतलिः-तेतलिरिति तेतलिपुत्रः, सूचामात्रत्वात्सत्रस्य, स कनकरथराजामात्यः, तदुपलक्षित तेतलिज्ञातम्, तेतलिपुत्रज्ञातमित्यर्थः। (१५) 'नंदिफले' नन्दिफलम्-नन्दिफलाभिधाना आपातभद्राः परिइस कथा से उपलक्षित होने के कारण इस अध्ययन का नाम रोहिणी ज्ञात हुआ है ।७ मल्लितीर्थकर के उदारहण से युक्त होने के कारण इस अध्ययन का नाम मल्लिज्ञात हुआ है । इसमें यह कहा गया है कि मल्लि कुंभकराज की पुत्री थी। ये १९ वे तीर्थकर बनी ८ माकंदी ज्ञात नामक अध्ययन में माकंदीदारक का वृत्तान्त लिखा हुआ है ९। चान्द्रिकजात में चंद्र के उदाहरण से विषय का प्रतिपादन किया गया है १०। दावद्रवज्ञात में समुद्रतट पर स्थित दावत्रुम के उदाहरण से विषय का प्रतिपादन किया गया है ११। उदकज्ञात में परिखा के जल के उदाहरण से पुद्गल का प्रतिपादन किया गया गया है १२। मंडूकज्ञात में नन्दमणिकार के जीव मेंढक के चरित्र का वर्णन किया गया है १३। कनकरथ राजा के अमात्य तेतलिपुत्र का वर्णनतेतलीज्ञात में किया गया है ।१४। नन्दिफलज्ञात કેવી રીતે મોટા પ્રમાણમાં તેની વૃદ્ધિ કરી તેનું કથન આવે છે. આ કથાથી ઉપલક્ષિત होपाथी मा अध्ययननु नाम रोहिणीज्ञात' छे. (८) मामा अध्ययनमा महिला तीय ४२ २९५ पाथी, ते अध्ययननु नाम 'मल्लिज्ञात' छे. तेमां से पता०यु छ भति, मानी पुत्री ती ते मागासमा तीय ४२ मनी. (e) माकंदीज्ञात' नामना अध्ययनमा माहानुं वृत्तान्त समेछ. (१०) 'चान्द्रिकज्ञात' मध्ययनमा यन्द्रना महारथी विषयनु प्रतिपाइन यु छ.[११]'दावद्वज्ञात' अध्ययनमा समुद्र निारे થતાં દાવમના ઉદાહરણથી વિષયનું પ્રતિપાદન કરેલ છે.[૧૨] જ્ઞાત અધ્યયનમાં પરિ माना - S२४थी पुगतनु प्रतिपादनु ४२।यु छ.(१३)मंडूकज्ञातमा नमा. २ना आना यरित्र वन रायु छ.[१४] तेतलिज्ञात' मध्ययनमा ४२५ शन अमात्य तेतलिपुत्रनुवान रायुछ. (१५) 'नन्दिफलज्ञात' नामना मध्य. શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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