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________________ २४० समवायाङ्गसूत्रे रेकवन्धनबद्धत्वार्थाभिधायकं ज्ञातं सङ्घाटज्ञातम् । (३) 'अंडे' अण्डम्-सूचनात् स्त्रमिति न्यायादत्र- अण्डम्' इति मयूराण्डम्, तदुपलक्षितमध्ययनम्-अण्डकज्ञातम्। (४) 'कूम्मे' कूर्मः-कूर्म इति कच्छपः, तदुदाहरणेन गुप्त्यगुप्तिगुणदोष प्रतिपादकत्वादिकं कूर्मज्ञातम् । (५) 'सेलए' शैलकः-शैलकराजर्षिवक्तव्यता विषयकमध्ययनं शैलकज्ञातम् । (६) 'तुंबे' तुम्बम्-अलाबूः, तदुदाहरणपतिपादकत्वेन तन्नाम्ना प्रसिद्धं तुम्बज्ञातम् । (७) रोहिणी-धन्यसार्थवाहपुत्रस्य धनरक्षणतत्पराभार्या, तस्याः शालिकणसुरक्षणवर्धनोदाहरणेन ममुपलक्षितं रोहिणीज्ञातम् । (८) मल्लि:-एतन्नाम्नी कुम्भकराजपुत्रीएकोनविंशतितमतीर्थकरपदअध्ययन में धन्यश्रेष्ठी और विजयतस्कर इन दोनों के बंधन में बद्धत्वरूप अर्थका कथन किया गया है-अतः इस ज्ञात-उदाहरण से उपलक्षित होने के कारण इस अध्ययन का नाम संघाट हुआ है। अंड नामक अध्ययन में मयूर के अंडों का कुथन किया गया है। इसलिये मयूराण्ड से उपलक्षित होने के कारण इस अध्ययन का नाम अंड हुआ है।३। कूर्म नाम के उदाहरण से गुप्ति और अगुप्ति के गुण और दोषों का प्रतिपादन किया गया है-अतः इस उदाहरण से उपलक्षित होने के कारण इस अध्ययन का नाम कूर्मज्ञात हुआ है ।४। शैलकराजर्षि का कथन शैलकज्ञात में किया गया है इस लिये इस अध्ययन का नाम शैलकज्ञात हुआ है ।५/ तुम्बज्ञात अध्ययन में तुंबडी के उदाहरण से विषय का प्रतिपादन किया गया है इसलिये इसका नाम तुंबज्ञात हुआ है। रोहिणीज्ञात में धन्यसार्थवाह के पुत्र का भार्या रोहिणी ने धनकी रक्षा की। उसे जो शालि. कण दिये गये थे सो उसने उन्हें सुरक्षित रखते हुए बहुत अधिक बढाया। ચેર, એ બનેને એક બંધનમાં બાંધવાની વાત કહેલ છે, તેથી આ જ્ઞાત ઉદાહરણથી Salक्षत वाथी मा अध्ययननु नाम संघाट शल्यु छ (3) अड नामना मध्य. યનમાં મોરનાં ઈંડાંનું કથન કરવામાં આવ્યું છે. તેથી મયૂરાડથી ઉપલક્ષિત હોવાને १२ मा अध्ययननु नाम 'अंड' ५ युछे. (४) 'कर्म' नामना अध्ययनमा ४ायબાના ઉદાહરણથી ગુપ્તિ અને અગુપ્તિના ગુણદોષનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું छ. तेथी से हाथी पक्षित पाथी ते अध्ययननु नाम कमज्ञात छ (५) शैलकजात ते नामना मध्ययनमा शै बिनुन ४२पामा माव्यु छ, तेथी ते मध्ययननु नाम शैलकज्ञात छ. (६) 'तुम्बज्ञात्' -अध्ययनमा तु मीना Set२०४थी विषय प्रतिपान ४२रायु छ तेथी तेनु नाम 'तुम्बज्ञात', ५ऽयु छ. रोहिणीज्ञात' मध्ययनमा धन्य साथ पानी पुत्रवधू डिलीये धननी वी शत રક્ષા કરી તેનું વર્ણન છે. તેને સાચવવા માટે જે શાલિકણ આપવામાં આવ્યા હતા તેને શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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