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________________ २४२ समवायाङ्गमत्र णामामदारुणा वृक्षाः, तदुदाहरणप्रतिपादकमध्ययनं नन्दिफलज्ञातम् । (१६) 'अपरकंका' अपरकङ्का-धातकी खण्ड-भरतक्षेत्रराजधानी, तत्र परिहतद्रौपद्यानयनाथे कृष्णवासुदेवगमनरूपाश्चर्यादि प्ररूपकं ज्ञातम्, अपरकङ्काज्ञातम्। [१७] 'आइण्णे' आकीर्णा:-कालिक द्वीपतिनो जात्यश्वाः, तदुदाहरणोपलक्षितम् आकीर्णज्ञातम् । (१८) 'सुसमानाम्नीधन्यश्रेष्ठि दुहिता, तचरित्रोपलक्षितमध्ययनं सुसुमाज्ञातम् । अपरं च-अन्यत् एकोनविंशतितमम्-'पोंडरीएणाए' पुण्डरीकं ज्ञातम्-पुण्डरीका पुष्कलावतीविजयमध्यवर्ति पुण्डरीकिणीनामनगाम् एतन्नामको राजा, तद्वक्तव्यतया पतिबद्धत्वादिदं पुण्डरीकज्ञातम् । जम्बूद्वीपे खलु द्वापे सूर्यो उत्कर्षेण एकोनविंशति योजनशतानि ऊर्ध्वमधश्च तपतः । अयं भावःजम्बूद्वीपस्याभो सूयौँ स्वस्थानादुपरि एकशतयाजनानि अधश्च अष्टादश शत नामक अध्ययन में आपातभद्र और परिणाम में दारुण ऐसे नन्दिफल नामक वृक्षों के उदाहरण से विषय का प्रतिपादन किया गया है १५॥ अपरकंका ज्ञात में धातकी खंडस्थभरतक्षेत्र की राजधानी अपरकंका में परिहृत द्रौपदी को वापिस लाने के लिये कृष्णवासुदेव के गमनरूप आश्चर्य आदि का वर्णन किया गया है ।१६। आकीर्ण ज्ञात में कालिक द्वीपवर्ती जात्यश्वों के उदाहरण से विषय का वर्णन किया है ।१७। सुंसमाज्ञात में धन्यश्रेष्ठी की सुंसमा नामकी कन्या के चरित्र का वर्णन किया गया है। ।१८। पुंडरीकज्ञात में पुष्कलावती विजय के मध्य में रही हुई पडरोकिणी-नामकी नगरी में वर्तमान पंडरीक नरेश के चारित्र का कथन है १९। जंबूद्वीप नामकद्वीप में दो सूर्य १९०० योजन तक ऊँचे तपते हैं। अर्थात जंबूद्वीप में दो सूयें हैं-वे अपने स्थान से ऊपर की और १००योजन तक तपते हैं और नीचे की और १८०० योजन तक तपते हैं। થનમાં આપાત ભદ્ર અને પરિણામમાં દારુણ એવા નદિલ નામનાં વૃક્ષોનું ઉદાહરણ १४ने विषय प्रतिपादन :यु छ (६) 'अमरकं काज्ञात' मा ५त. આવેલી ભરતક્ષેત્રની રાજધાની અપરકંકામાં હરણ કરી લઈ જવ ચેલ દીપ ને પાછી લાવવાને માટે કૃષ્ણવાસુદેવના ગમનરૂપ આશ્ચય આદિનું વર્ણન કરાયું છે. ( ૭) 'आकीर्णज्ञात' भi 0 द्वीपमा २९८ मश्वोनु २६५ न विषयनु न ४२रायु छ. (१८) 'सुंसमाज्ञात' : मध्ययनमा धन्यशेनी सुसमा नामनी न्याना यत्रिनु १७ ४२१ामा माव्यु छ. (16) 'पुंडरीकज्ञात, मध्ययनमा पु ती વિજયની મધ્યમાં આવેલ પુંડરીકિણી નામની નગરીમાં રહેતા પુંડરીક નરેશના ચરિત્રનું વૃત્તાન્ત છે. જંબુદ્વીપ નામના દ્વીપમાં બે સૂર્ય ૧૯૦૦ જન સુધી ઉંચે નીચે તપે છે. એટલે કે જંબુદ્વીપમાં બે સૂર્ય છે. તે પોતાના સ્થાનથી ઉપરની તરફ સો જન સુધી તપે છે અને નીચેની બાજુ ૧૮૦૦ જન સુધી તપે છે. શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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