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________________ २२४ समवायाङ्गसत्रे 'तब्भवमरणम्' तद्भवमरणम्, तिर्यङ्मनुष्यभवलक्षणे वर्तमानो जन्तुः पुनस्तस्यैव भवस्य योग्यानि आयुःकर्माणि आबध्य, आयुःक्षयेण यन्म्रियते, म्रियमाणस्य तस्य यन्मरणं तत् तद्भवमरणमुच्यते । एतन्मरणं तिर्यङ्मनुष्याणामेव, न तु देवनारकिणाम्, तेहि मृत्वा न तत्रैवभवे समुत्पद्यते । 'बालमरणे' बालमरणम्= बाल इव बालः अविरतः तस्य मरणं बालमरणम् । इदं हि संसारपरिभ्रमणकारकम् , “पंडितमरण' पण्डितमरणम्पण्डित इव पण्डितः सर्वेविरतिमान् तस्य मरणम् पाण्डितमरणम्, इदं हि संसारविच्छेदकारकम्, 'बालपंडितमरणे' बालपण्डितमरणम् , बालपण्डितो देशविरतिः तस्य मरणं बालपण्डितमरणमुच्यते, एतदपि भवभ्रमणनिवारकम् । 'छउमत्थमरणे' छद्मस्थमरणम्, छद्मस्थ:-केवलके सद्भाव में जिस व्रती का मरण हो जावे उसका वह मरण अन्तः शल्यमरण है।६। तद्भवमरण-तियश्च अथवा मनुष्य भव में वर्तमान मनुष्य या तिर्यश्च प्राणी का उसी भव केयोग्य आयुकर्म का बंध करके जो आयु के क्षय हो जाने पर मरण हो जाता है वह तद्भवमरण है। यह मरण मनुष्य और तिर्यञ्चों में ही होता है। देवनारकियों में नहीं, क्यों की वे मरण कर उस भव में पुनः उत्पन्न नहीं होते है ७ बालमरण-अविरति युक्त जीव का जो मरण होता है वह बालमरण है। यह मरण संसारपरिभ्रमण का कारण कहा गया है ८। पंडितमरण सर्वविरति संपन्न जीवों के मरण का नाम पंडितमरण है। यह मरण संसार के विच्छेद का कारण कहा गया है ९। बालपंडितमरण-बालपंडित शब्द का अर्थ देशविरति है । इस देशविरतियुक्त जीव का जो मरण होता है वह बालपंडितमरण है, यह मरण भवभ्रमण का निवारक होता है १०। ने प्रतवारीनु भ२५५ थाय छ, तेनु ते भरण अन्तःशल्यमरण छ. (७) तद्भवमरण તિર્યંચ અથવા મનુષ્યભવમાં રહેલ મનુષ્ય કે તિર્યંચ પ્રાણનું એ જ ભવને યોગ્ય मायुम ना ५ ४शन आयुनो क्षय पाने सीधे रे भरण थाय छ तेन तद्भवमरण / छे. ते प्रानु भ२६ मनुष्य भने तिय यम । थाय छ, हे ना२४ी. એમાં થતું નથી, કારણ કે તેઓ મહીને તે ભવમાં ફરી ઉત્પન્ન થતા નથી. (૮) वालमरण-मविरति युत नुरे भ२९५ थाय छे. तेने मासभर ४ छे. म। प्रा२ना भने संसारपरिश्रमानु ॥२९५ यु छे. (८) पंडितमरण-सव विति યુકત જીવેના મરણને પંડિતમરણ કહે છે. આ મરણ સંસારના વિચ્છેદનું કારણ हेवाय छे. (१०) बालपंडितमरण पासपडित २०४ने। म शिविरति छ. ५॥ દેશવિરતિ યુકત જીવનું જે મરણ થાય છે તેને “બાલપંડિતમરણ” કહે છે, આ भ२९ अपभ्रमणानु निपा२४ गाय छे. (११) छद्मस्थमरण शानथी. २क्षित શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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