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________________ भावबोधिनी टीका. भाविवासुदेवबलदेवमतापितादिनामनिरूपणम् ११३७ बलदेववासुदेवाणं पुब्वभविया णव नामधेज्जा भविस्संति, नव धम्मायरिया भविस्संति, (नव नियाणं भूमीओ भविस्संति नव नियाण करणा भविस्संति) एतेषां खलु नवानां बलदेववासुदेवानां पूर्वभवकानि नव नामधेयानि भविष्यन्ति, नव धर्माचार्याः भविष्यन्ति, नव निदानभूमयो भविष्यन्ति, नव निदानकारणानि भविष्यन्ति-इन नौ बलदेव और वासुदेवों के पूर्वभव संबंधी नौ नौ नाम होंगे, नौ धर्माचार्य होंगे, नव निदानभूमियां होंगी, नव निदान कारण होंगे (नव पडिसतू भविस्सति) नव प्रतिशत्रयो भविष्यन्ति-नौ प्रतिशत्रु होंगे, (तं जहा) तद्यथा-उन नौ प्रतिशत्रुओं के ये नाम हैं (तिलए य लोहजंधे य वइरजंधे य वे.सरी पहराए अपराइए य भीमे महाभीमे य सुग्गीवे)तिलको लोहजङ्घो वनजङ्घश्च केसरी, प्रह्लादः अपराजितश्च भीमो महाभीमश्च सुग्रीवः- तिलक १, लोहब्ध २, वज्रजंध ३ केशरी ४, प्रह्लाद ५, अपराजित ६, भीम ७, महाभीम ८, सुग्रीव ९, (एए खलु पडिसत्तु कितिपुरिसाणवासुदेवाणं) एते खलु प्रतिशत्रवः कीर्तिपुरुषाणां वासुदेवानाम्-ये पूर्वोक्त प्रतिशत्रु कीर्तिपुरुष वासुदेवों के होंगे। (सव्वेवि चक्कजोही हम्माहिति सचक्केहि) सर्वेऽपि चक्रयोधिनः सर्वे देवाणं पुन्वभविया णव नामधेजा भविस्संति नव धम्मयरिया भविस्संति नवनियाणभूमीओ भविरसंत नवनियाणकारणा भावसति) एतषां खलु नवानां बलदेववासुदेवाना पूर्वभवकानि नव नामधेयानि भविष्यन्ति नव धर्माचार्याः भविष्यन्ति नव निदानभूमियो भविष्यन्ति, नव निदानकारणानि भविष्यन्ति-ते मजये। भने वासुदेवाना पूर्व सपना नव नाम हरी, नयी याये थशे, नव निशानभूमियो थरी भने न नहाना२णे(नव पडिसत्त भविस्संति) नवप्रतिशत्रवो भविष्यन्ति-नव प्रतिशत्रु वासुदेवो यश, (तं जहा) तद्यथा-ते नव प्रतिवासुदेवानां नाम मा प्रमाणे शे-(तिलए य लोहजंघे वइरजंघे य केसरी पहराए अपराइए भीमे महाभीमे य सुग्गीवे) तिलको लोइजङ्घो वज्रजङ्घश्च केशरीप्रह्लादः अपराजितश्च भीमो महाभीमश्च सुग्रीव:(१) तिax, (२) , (3) qara, (४) शरी, (५) प्रसाद, (६) १५. नित, (७) भीम, (८) महालीम अने (८) सुश्रीव (एए खल पडिसत्त कित्तिपुरिसाण वासुदेवाणं) एते खलु प्रतिशत्रवः कीर्तिपुरुषाणां वासु. देवानां-पूति प्रतिवासुदेव। जति पुरुष वासुदेवाना प्रतिशत्रुमे यश. (सब्वे वि चक्काही हम्महिंति सचक्केहि) सर्वेपि चक्रयोधिनः सर्वे हनिष्यन्ते १४3 શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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