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________________ ११३६ समवायाङ्गसूत्रे पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसी एवं सो चेव वण्णओ भाणियवो जाव नीलगपीयगवसणा दुवे दुवे रामकेसवा भायरो भविस्संति) उत्तमपुरुषाः मध्यमपुरुषाः प्रधानपुरुषाः ओजस्विनः तेजस्विनः एवं स एव वर्णको भणितव्यः यावत् नीलक पीतक वसना द्वौ द्वौ रामकेशवौ भ्रातरौ भविष्यन्तः इन सब पदों का अर्थ २१३ सूत्र की व्याख्या करते समय लिख दिया गया है । (तंजहा) तद्यथा-उनके नाम इस प्रकार से होंगे। (नंदे य नंदमित्ते दीहबाहू तहा महाबाहू, अइबले महाबले बलभदे य सत्तमे दुविट्ठ य तिविट्ठ य) नन्दश्च नन्दमित्रा दीर्घबाहुस्तथा महाबाहुः अतिबलो महाबलो बलभद्रश्च सप्तमः द्विपृष्ठश्च त्रिपृष्ठश्च-नन्द, नन्दमित्र, दीर्घबाहु महाबाहु, अतिबल, महाबल, सातवें बलभद्र, द्विपृष्ठ और त्रिपृष्ठ । (आगमिस्साण विण्हुणो) आगमिष्यन्तः खलु विष्णवः-ये नाम आगामीकाल में उत्पन्न होने वाले विष्णु-वासुदेव के होंगे। (जयंते विजये भद्दे सुप्पभे य सदसणे आणंदे, नंदणे पउमे संकरिसणे य अपच्छिमे) जयन्तः विजयोभद्रःसुप्रभश्च सुदर्शनः आनन्दो नन्दनः पद्म सङ्कर्षणश्च अपश्चिमः-जयंत. विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनंद, नंदन, पद्म और अन्तिम संकर्षण । ये नौ नाम आगामीकाल में उत्पन्न होनेवाले बलदेवो के होंगे। (एएसि णं नवण्हं पुरिसा, पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसी एवं सोचेव चण्णओ भाणियब्वो जावनीलग पीयगवसणा दुवे दुवे रामकेसवा भायरो भविस्संति) उत्तमपुरुषाः मध्यमपुरिषाः प्रधानपुरुषाः ओजस्विनः तेजस्विनः एवं स एव वर्णको भणितव्यः यावत् नीलकपीतकवसना द्वौ द्वौ रामकेशवौ भ्रातरो भविष्यन्तिमा पहोना अथ सूत्र २१मा मापी वीधेट छ. (तंजहा) तवधा-तमनां नाम मा प्रमाणे शे-(नंदेय नंदमित्ते दीहबाहू तहा महाबाहू, अइबले महाबले बलभद्दे य सत्तमे दुविट्ठ यतिविट्ठय) नन्दश्च नन्दमित्रो दीर्घबाहु स्तथा महाबाहुः अतिबलो महाबलो बलभद्रश्च सप्तमः द्विपृष्ठश्च त्रिपृष्ठ-(१) नन्ह. (२) नन्हभित्र, (3) मार्ड, (४) मडामा (५) मतिमस (6) महास, (७) मलद्र, (८) विY०४ अने (८) त्रि५°४. (आगमिस्साण विण्हुणो) आगमिष्यन्तः खल विष्णवः-मागाभा मा पन यना। विमा-वासुदेवानां ते नाभी .(जयंते विजये भद्दे सुप्पभे य सुदंसणे आणंदे नंदणे पउमे संकरिसणे य अपच्छिमे) जयन्तो विजयो भद्रः सुप्रभश्च सुदर्शनः आनन्दो नन्दनः पद्मः सर्षणश्च अपश्चिमः-(१) यत, (२) विन्य, (3) मद्र, (४) सुप्रभ, (५) सुशन, (६) भान ४ (७) नं (न, (८) पद्म भने छेदा A I, मे न५ मामी आमा म थशे. (ए ए सिणं नवण्हं बलदेल-वासु શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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