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________________ समवायाङ्गसूत्रे टीका- 'जंबुद्दीवे णं' इत्यादि - जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे भारते वर्षेऽस्यामवसर्पिण्यां द्वादश चक्रवर्त्तिनोऽभूवन् तद्यथा- भरतः सगरो मधवा सनत्कुमारच राजशार्दूलः । शान्तिः कुन्युश्च अरो भवति सुभूमच कौरव्यः || ४८ || नवमश्च महापद्मौ हरिषेणश्चैव राजशा-लः । जयनामा च नरपतिर्द्वादशो ब्रह्मदत्तश्च ॥ ४९ ॥ एतेषां द्वादशानां चक्रवर्त्तिनां द्वादशस्त्रीरत्नान्यासन्, तद्यथा - प्रथमा भवति सुभद्रा भद्रा सुनन्दा जया च विजया च । कृष्णश्रीः सूरश्रीः पद्मश्रीर्वसुन्धरा देवी ॥ ५० ॥ लक्ष्मीवती कुरुमती स्त्रीरत्नानां नामानि ॥ २०५ ॥ संप्रति बलदेववासुदेवादिनां मातृपितृनामान्याह - मूलम् - - जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए नव वलदेव नव वासुदेवपियरो होत्था, तं जहा - पयावई य बंभे य ग्यारहवीं लक्ष्मीवती और बारहवी कुरुमती (इत्थी रयणाण नामाई ) स्त्रीरत्नानां नामानि इस प्रकार उन चक्रवर्तियों के स्त्री रत्नों के ये नाम हैं ।। सू०२०५।। टीकार्थ- जंबुद्दीवेणं दीवे इत्यादि-जंम्बूद्वीप नामके द्वीप में भारतवर्ष में इस अवसर्पिणीकाल में बारह चक्रवर्ती हुए है। उनके नाम ये हैं- भरत सगर, मघवा, सनत्कुमार, शांति, कुथु, अर, सुभूम, महापद्म, हरिषेण जय और ब्रह्मदत्त | ये सब चक्रवर्ती राजाओं सिंह जैसे विशिष्ट शक्तिशाली होते हैं। ये बारह चक्रवर्तियों के नाम हैं। इन बारह चक्रवर्तियों के बारह स्त्री रत्न थे। उनके नाम ये हैं- पहिली सुभद्रा, फिर दूसरी भद्रा, तीसरी सुनंदा, चौथी जया, पांचवी विजया छठवी कृष्णश्री, सातवीं सूरश्री, आठवीं पद्मश्री, नववीं वसुंधरा, दसवीं देवी, ग्यारहवीं लक्ष्मीवती और बारहवीं कुरुमती, इस प्रकार उन चक्रवर्तियों के स्त्री रत्नों के ये नाम हैं । सू० २०५ || १०९० मने (१२) डुरुमती. ( इत्थीरयणाण नामाई) स्त्रीरत्नानां नामानि - परेश પ્રકારના તે ચક્રવતિ ચેાની પત્નીનાં નામ હતાં. ાસૂ ૨૦પાા ०४ टीडार्थ' - 'जंबुद्दीवे णं दीवे' इत्यादि ॥ भवसर्पिशु आजमां यूद्वीप નામના દ્વીપમાં આવેલા ભારતવષ માં બાર ચક્રવતિયા થયા છે. તેમનાં નામ આ प्रमाणे छे-लस्त, सगर, भधवा, सनत्कुमार, शान्ति, हुंथु, भर, सुलभ, महापद्म, હરિષણ, જય અને બ્રહ્મદત્ત. તે બધા ચક્રવર્તિ રાજાઓમાં સિહ સમાન વિશિષ્ટ કિત હતી. તે ખાર ચક્રવતિયાનાં બાર સ્ત્રીરત્નાનાં નામ અનુક્રમે આ પ્રમાણે हृतां सुभद्रा, लद्रा, सुनंदा, क्या, विन्या, कृष्णणुश्री, सूरश्री, पद्मश्री, वसुंधरा, દેવી, લક્ષ્મીવર્તી અને કુરુમતી. । સૂ. ૨૦પા શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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