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________________ १०८६ समवायाङ्गसूत्रे टीका-'जंबुद्दीवे णं' इत्यादि-जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे भारते वर्षेऽस्यावसर्पिण्यां द्वादश चक्रवर्ति पितर आसन , तद्यथा-ऋषभः सुमित्र विजयः समुद्रविजयश्चाश्वसेनश्च । विश्वसेनश्च सूरः सुदर्शन: कार्तवीर्यश्रेव ४६॥ पद्मोत्तरो महाहरिः विजयो राजा तथैव च । ब्रह्मा द्वादश उक्तानि पितृनामानि चक्रवर्तिनाम् ।।४७|सू.२०३।। चक्रवर्ति पितर आसन बारह चक्रबतियों के पितृजन हुए हैं। तं जहा)तद्यथाउनके नाम इस प्रकार से हैं-(उसभे) ऋषभः-ऋषभ (सुमित्ते) सुमित्र - सुमित्र, (विजए) विजयः-विजय (समुद्दविजए य) समुद्रविजयश्च- समुद्रविजय, (आससेणे य) अश्वसेनश्च-अश्वसेन (विस्ससेणे य) विश्वसेनश्चविश्वसेन. (सूरे) सूरः-शर (सुदंमणे) सुदर्शन, (कत्तवीरिए चेव) कात वीयश्चैव-कार्तवीर्य (प उमुत्तरे) पद्मोत्तरः-पद्मोत्त , (महाहरी) महाहरिःमहाहरि, (राया विजए) राजा विजयः- राजा विजय (बारमेवंभे) द्वादशः ब्रह्मा-बारहवें ब्रह्म (चक्कवहाणं पिउनामा उत्ते) चक्रवर्तिनां पितृनामानि उक्तानि-ये चक्रवर्तियों के पितृजनो के नाम कहे हैं ॥सू० २०३।। टीकार्थ-जंबुद्दीवे णं दी वे भारहे वासे' इत्यादि-जंबूद्वीप नाम के इस द्वीप में भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में बारह चक्रवत्तियों के पिता हुए हैं। उनके नाम इस प्रकार से हैं-ऋषभ, सुमित्र विजय, समुद्रविजय अश्वसेन, विश्वसेन, सूर सुदर्शन, कार्तवीर्य पद्मोत्तर, महाहरि, राजा विजय और बारहवें ब्रह्मा ये चक्रवर्तियों के पिता के नाम कहे हैं।।सू.३०३॥ द्वादशचक्रवर्तिपितर आसन्-२ य:पति याना पिताना नाम तi (तं जहा) तद्यथा- प्रमाणे छ-(उसभे) ऋषभ:-ऋषम, (सुमित्ते) सुमित्र:-सुभित्र, (विजए) विजयः-विय, (समुद्दविजए य) समुद्रविजयश्च-समुद्रविय, (आससेणे य) अश्वसेनश्च-मवसेन, (विस्ससेणे य) विश्वसेनश्च-विश्वसेन, (सूरे) सूरः -शूर, (सुदंसणे) सुदर्शन:-सुशन, (कत्तवीरिए चेव) कार्तवीर्यश्चैव-त्ति पीयः, (पउमुत्तरे) पद्मोत्तरः-५ोत्तर, (महाहरी) महाहरिःभारि, (रायाविजए)राजाविजयः-विल्य, (बारमे बंभे)द्वादशः ब्रह्माभने मा२मां ब्रह्मा. (चक्कवट्टीणं पिउनामा उत्ते) चक्रवर्तिनां पितृनामानि उक्तानि-से प्रभारी पति याना पितामा नाम छ. ॥५. २०॥ ___टी -'जंबूद्दीवे णं दीवे भारहे वासे'इत्यादि-दीयमांना मारत. વર્ષમાં આ અવસર્પિણ કાળમાં જે બાર ચક્રવતિ થયા તેમના પિતાનાં નામ અનુક્રમે આ પ્રમાણે છે–અષભ, સુમિત્ર, વિજય, સમુદ્રવિજય, અશ્વસેન, વિશ્વ સેન, સૂર, સુદર્શન, કાર્તવીર્ય, પક્વોત્તર, મહહરિ, રાજા વિજય અને બ્રહ્મ ઉપરોકત નામો ચકવતિના પિતાનાં છે. અસૂ. ૨૩ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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