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________________ - सुघाटीका स्था०८ सू० ३ कर्मप्रकृतिनां त्रयादिनिरूपणम् ११ नाश्रित्य विवरणीयानि । अमेवार्थ सूचयितुमाह सूत्रकारः- नेरइयाणं अट्ठकम्म. पगडीओ चिणिसु बा' इत्यादि-' एवं निरन्तरं जाव वेमाणियाणं' इत्यन्तमिति । एयमुपचय-मूत्राण्यपि सामान्य विशेषोभयात्मकानि बोध्यानि । तदाह-" जीवाणं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणि सु वा, उपचिणंति वा उवचिणिस्संति चा, एवं " इति । एवमेव सामान्यविशेषरूपेण बन्धादि सूत्राण्यपि । विज्ञेयानि । एतदेव दर्शयितुं संग्रहणीगाथोत्तरार्द्धमाह " एवं चिण उवचिण बंध उदीर वेय तहणिज्जरा चेव" इति। चयोपचयसूत्राणि तु सामान्यविशेषोभयात्मकत्वेनोक्तानि । बन्धसूत्राणि उदीरणासूत्राणि वेदनासूत्राणि निर्जरासूत्राणि चापि सामान्यविशेषोभया. इसी तरहसे यावत् चैमानिक जीवोंने भी निरन्तर अतीत कालमें आठ कर्म प्रकृतियोंका उपार्जन किया है, वर्तमान में वे उनका उपार्जन करते हैं, तथा भविष्यकाल में भी वे उनका उपार्जन करेंगे। इसी प्रकारसे सामान्य विशेष रूपसे उपचय सम्बन्धी सूत्रोंका भी कथन कर लेना चाहिये. यही बात सूत्रकारने " जीवा णं अट्ठकम्मपगडीओ उचिणिसु० वा, उपचिणंति वा, उयचिणिस्संति वा एवं चेच" इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट की है, तथा इसी तरहसे सामान्य विशेष रूपसे बन्धादि सूत्रोंको भी कहलेना चाहिये यह प्रकट करनेके लिये यहां सूत्रकारने संग्रहणी गाथाका यह उतरार्ध "एवं चिण उपचिण बंध उदीरयेय तह णिज्जरा चेय" कहा है । तात्पर्य इसका ऐसा हैकि जिस प्रकार सामान्य और विशेष रूपसे ये चयसूत्र और उपचय. सूत्र कहे गये हैं-उसी प्रकार से बन्धमूत्र, उदीरणामूत्र, वेदनासूत्र जीवाणं अटुकम्मपगडीओ उपरिण'सु वा, उपचिणंति वा, उवचिणिसंति वा एवं चेच" यय सूत्रमा बुथन ४२पामा मा०यु छे से यन સામાન્ય છે અને નારકોથી લઈને વૈમાનિક પયેતના જીવોના વિષયમાં ઉપચયને અનુલક્ષીને પણ કરવું જોઈએ. એ જ પ્રમાણે સામાન્ય વિશેષરૂપ બધાદિ સૂત્રોનું પણ કથન કરવું જોઈએ. એજ વાત પ્રકટ કરવાને માટે સૂત્રકારે અહીં સંગ્રહણી ગાથાને આ ઉત્તરાર્ધ ભાગ प्रट ज्य -" एवं चिण उपचिण बंध उदिरवेय तह णिज्जरा चेव" मा કથનને ભાવાર્થ એ છે કે જેવી રીતે સામાન્ય અને વિશેષરૂપે ચયસૂત્રનું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એ જ પ્રમાણે બધસૂત્ર, ઉદીરણા સૂત્ર, વેદના સત્ર અને નિરાસૂત્રનું પણ સામાન્ય અને વિશેષરૂપે કથન કરવું જોઈએ, શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૫
SR No.006313
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages737
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size39 MB
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