________________
सुधा टीका स्था०९ सू०२ आचाराङ्गस्य ब्रह्मचर्यह्नपनचाध्ययननिरूपणम् २१५ पूर्व जिनाज्ञानतिक्रामकः श्रमण उक्तः, स च ब्रह्मचर्यरत एव भवतीति ब्रह्मचर्य विभक्तुं तत्प्रतिपादकाध्ययनानि दर्शयितुमाह
मूलम् - णव बंभचेरा पण्णत्ता, तं जहा - सत्यपरिन्ना १, लोगविजओ २, जाव उवहाणसुयं ८ महापरिण्णा ९ ॥ सू०२|| छाया - तव ब्रह्मचर्याणि प्रज्ञप्तानि तद्यथा - शस्त्रपरिज्ञा १, लोकविजयः २ यावत् उपधानश्रुतम् = महापरिज्ञा ९ ।। सू० २ ।
"
टीका--" णव बंभचेरा" इत्यादि-
ब्रह्मचर्याणि कुशलानुष्ठानानि तत्प्रतिपादकाध्ययनान्याचाराङ्गः - प्रथम श्रुतस्कन्धप्रतिबद्वानि नव प्रज्ञप्तानि तानि परिगणयति' तं जहे ' त्यादिना, तद्यथा - शस्त्रपरिज्ञा - शस्त्रं - द्रव्य भावभेदादनेकविधं जीवसानिमित्तस्य
emp
तस्य
पहिले जिनाज्ञाका अनतिक्रामक होता है, ऐसा कहा गया है, सो ऐसा श्रमण ब्रह्मवर्य में रतही होता है इसलिये अब सूत्रकार ब्रह्मचर्य प्रतिपादक अध्ययनों को प्रकट करनेके लिये कथन करते हैं
"
―
णच बभवेरा पण्णत्ता' इत्यादि || सूत्र २ ॥
टीकार्थ- कुशल अनुष्ठानोंका नाम ब्रह्मचर्य है, इन कुशलानुष्ठान रूप ब्रह्मचर्य के प्रतिपादक जो अध्ययन है - आचाराङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध से प्रति बद्ध जो अध्ययन हैं वे नौ कहे गये हैं जो इस प्रकार से हैं - जैसे- शस्त्र परिज्ञा १, लोकविजय २, यावत् उपधानश्रुत ८ और महापरिज्ञा९ इनमें जो शस्त्र, द्रव्य और भावके भेद से दो प्रकारका है, जीव हिंसा के निमित्त भूत शस्त्रका ज्ञानपूर्वक त्याग करना सो शस्त्रपरिज्ञा है, यह शस्त्र परिज्ञा प्रतिपाद्य रूपसे जिस अध्ययन में है वह अध्ययन भी 44 शस्त्रपरिज्ञा " इस नामसे कहा गया है, शत्रुकी तरह रागद्वेष रूप भावलोकका दूर करना यह लोक विजय है, इस लोकविजयका प्रतिपादक जो अध्ययन है वह अध्ययन भी " लोकविजय " इस
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૫
જિનાજ્ઞાનું ઉલ્લંઘન નહીં કરનાર શ્રમણ નિ ય સદા બ્રહ્મચર્યના પાલ નમાં પ્રયત્નશીલ રહે છે. તેથી હવે સૂત્રકાર બ્રહ્મચર્યનું પ્રતિપાદન કરનારાં अध्ययनानुं नि३५ ४२ छे - " जब बंभचेरा पण्णत्ता" इत्यादिટીકા-કુશલ અનુષ્ઠાનેાનુ` નામ બ્રહ્મચર્યાં છે. આચારાંગ સૂત્રના પ્રથમ શ્રુતકન્ય રૂપે પ્રતિબદ્ધ જે નવ અધ્યયના છે તેમાં આ કુશલ અનુષ્ઠાન રૂપ બ્રહ્મચય નું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે. તે નવ અધ્યયને નીચે પ્રમાણે છે-(!) શસ્ત્રपरिज्ञा, (२) सोऽपिभ्य ( यावत्) (८) उपधानश्रुत, मने (E) महापरिज्ञा