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जम्बू द्वीपगत भरतादि दशक्षेत्रका निरूपण ४१५-४१६ अञ्जनक पर्यत आदिके उद्वेध आदिका निरूपण ४१७-४१८ रुवकवर कुण्डलवर पर्वतके उद्वेध आदिका निरूपण ४१९ द्रव्यानुयोगके स्वरूपका निरूपण
४२०-४२९ चमरादि अच्युतेन्द्र आदिके उत्पात पर्वतका निरूपण ४३०-४४९ योजन सहस्रात्मक अवगाहनाका निरूपण ४५०-४५२ दश प्रकार के अन्त के स्वरूपका निरूपण ४५३-४५४ पूर्वगतश्रुतका निरूपण दश प्रकारकी प्रतिसेवनाका निरूपण
४५६-४५९ आलोचनामें त्यागने योग्य दोषोंका निरूपण ४६०-४६२ आलोचना देनेवाले और लेनेवालेके गुणका निरूपण ४६३-४७१ प्रायश्चित्त के स्वरूपका निरूपण
४७२-४७४ मिथ्यात्वका निरूपण
४७५-४७७ वासुदेव सम्बन्धी वक्तव्य निरूपण
४७८-४८० भवनवासी देवका निरूपण दश प्रकारके सुखका निरूपण
४८२-४८५ उपघात और विशोधिके स्वरूपका कथन ४८६-४९५ संक्लेश और असंक्लेश के स्वरूपका कथन ४९६-४९७ दश प्रकारके बलका निरूपण
४९८-५०० सत्यमृषा आदिका निरूपण
५०१-५१२ दृष्टिवादके नामका निरूपण
५१३-५१७ दश प्रकार के शस्त्रका निरूपण
५१८-५३७ वाग (वाणी-वचन) योगका निरूपण
५३८-५५० दानके भेदोका कथन
५५१-५५५ गति के भेदोंका निरूपण
५५६-५५८ दश प्रकारके मुण्ड के स्वरूपका कथन
५५९-५६० दश प्रकारके संख्यानका निरूपण
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શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૫