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________________ सुधा टीका स्था. ५३.२सू. २६ भाव प्रबुद्धस्य कारणेसति आज्ञानतिक्रमणतानि० १३५ भवन्तीं वा प्रपतन्ती = भूमौ पतनं प्राप्नुवतीं वा, प्रस्खलन- प्रपतन लक्षण प्रदशिका गाथा यथा "भूमीए असंपत्तं, पत्तं वा हस्थजाणुजाईहिं । पक्खलणं नायव्वं, पवडण भूमीप गत्तेहिं " ॥१॥ छाया - भूमौ असंप्राप्तं प्राप्तं वा हस्तजानुकादिभिः । प्रस्खलनं ज्ञातव्यं, प्रपतनभूमौ गात्रैः ॥१॥ 9 इति गाथानुसारेण भूमौ असंप्राप्तिः, हस्तजानुकादिषु केनचिदेकेनाङ्गेन वा प्राप्तिः प्रस्खलनं, सर्वगात्रैर्भूमौ प्राप्तिस्तु प्रपतनम् तत् प्रस्खलनं प्रपतनं या प्राप्नुवतीं निर्ग्रन्थीं गृह्णन् वा अवलम्बमानो वा आज्ञां नातिक्रामतीति द्वितीयं स्थानम् । तथा-निर्ग्रन्थः सेके सीयते = बध्यते यस्मिन्नसौ सेकः = सजलकर्दमस्थिति में साधु उसे सहाय दे सकता है। इसमें जिनाज्ञाके उल्लङ्घन करने जन्य दोष से वह लिप्त नहीं हो सकता है, प्रस्खलन और प्रपतन का लक्षण इस प्रकार से कहा गया है । 66 भूमीए असंपत्तं " इत्यादि जिसमें चलते २ इस प्रकारकी स्थिति हो जाय कि भूमि पर गिरना तो हो नहीं किन्तु फिसलना हो जाय वह स्खलन है अथवा हाथ घुटनों बलही जमीन पर गिरना हो जाय वह प्रस्खलन है । ऐसे प्रस्खलन में शरीर पशुके जैसा झुक जाता है, तथा उसमें भूमिका स्पर्श नहीं होता है, जमीन पर जो शरीरका पतन हो जाता है यह प्रपतन है । इस गाथा के अनुसार भूमि पर गिरना तो हो नहीं उस ओर केवल झुकना हो अथवा - हस्तजानुकादि अंगो में से किसी एक अङ्ग द्वारा भूमिका स्पर्श हो यह प्रस्खलन है और समस्त अङ्गोंसे जिस पतनमें जमीनका स्पर्श हो जाय वह प्रपतन है । तृतीय कारण ऐसा है कि જમીન પર પડી જાય, તા તેમને સહારો દેનાર સાધુ જિનાજ્ઞાના વિરાધક ગણાતા નથી. પ્રસ્ખલન અને પ્રપતનનું લક્ષણુ આ પ્રમાણે છે. 66 'भूमिए असंपत्तं " त्याहि-न्यारे यासतो यासतां भीन पर आयु શરીર પડી જાય છે, ત્યારે પ્રપતન થયું ગણાય છે, પણ લપસી જવાને કારણે શરીર એક બાજુ મૂકી જાય છે અને હાથ આદિ કાઇ એક જ અંગને આધારે જમીન પર ખડુ' રહે છે, ત્યારે તેનું પ્રસ્ખલન થયું કહેવાય છે. પ્રતન વખતે આખુ શરીર ભૂમિના સ્પર્શ કરે છે, પણ પ્રસ્ખલન વખતે તે કાઇ એક જ અંગભૂમિના સ્પર્શ કરે છે. श्री स्थानांग सूत्र : ०४
SR No.006312
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size42 MB
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