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__ स्यानाङ्गसूत्रे क्रियं-प्रस्तावादशुभकर्मवन्धयुक्तं स्थानम्-प्रायश्चित्तस्थानं प्रतिसेविता भवतीति प्रथम स्थानम् १। प्रतिसेव्य-सक्रियस्थानस्य सेवनं कृत्वा, न आलोचयतिगुरवे न निवेदयतीति द्वितीय स्थानम् २। आलोच्य गुरुवे निवेद्यापि तदुपदिष्टं प्रायश्चित्तं नो प्रस्थापयति कर्तुं नैवारभते, इति तृतीय स्थानम् ३॥ प्रस्थाप्य= गुरूपदिप्टं प्रायश्चित्तमारभ्यापि नो निर्विशति-समग्रं नो परिपालयति, इति चतुर्थ स्थानम् ४ । तथा-यानि इमानि गच्छमसिद्धानि स्थविराणां स्थविर कि यदि उस साधुने “ सक्रियस्थान प्रतिसेविता भवति" १ अशुभ कर्मका बन्ध जिस स्थानसे-कारणसे होता है, ऐसे कारणका सेवन कर लिया है, प्रायश्चित्त स्थानका वह प्रतिसेवन करनेवाला बन गया है, तो वह इस स्थितिमें विसांभोगिक कर दिया जाता है, ऐसा यह प्रथम स्थान है, दूसरा स्थान-" प्रतिसेव्य नो आलोचयति" सक्रिय स्थानका सेवन करके भी जो उसकी वह आलोचना नहीं करता है, तो ऐसी स्थितिमें भी वह विसांभोगिक कर दिया जाता है, २। गुरुसे निवेदन करना इसका नाम आलोचना है। तृतीय कारण ऐसा है "आलोच्य नो प्रस्था० " गुरूसे निवेदन करने पर भी उनके द्वारा प्रदत्त प्रायश्चि त्तको जो प्रारम्भ नहीं करता है, ऐसी स्थितिमें वह विसांभोगिक कर दिया जाता है। चतुर्थ कारण ऐसा है “प्रस्थाप्य नो निर्वि" गुरु प्रदत्त प्रायश्चित्तको प्रारम्भ करकेभी जो उसे पूर्ण रूपसे नहीं पालता है, ऐसी स्थितिमें भी वह विसांभोगिक कर दिया जाता है। नीचे प्रमाणे छ-(१) ने ते साधुमे “ सक्रियस्थान प्रतिसेविता भवति" જે કારણે અશુભ કર્મને બન્ધ થતું હોય એવા કારણનું એટલે કે દુકૃત્યનું પ્રતિસેવન કર્યું હોય, તે તેને વિસાંગિક જાહેર કરી શકાય છે. (૨) " प्रतिसेव्य नो आलोचयति " सठिय स्थानतुं-दुष्कृत्यनु सेवन ४० ५० ने તે તેની આચના ન કરે, તે તેને વિસાભેગિક જાહેર કરી શકાય છે. કૃત ५।५४मान गुरु समक्ष २ ४२ तेनु नाम मासायना छ. (3) " आलोच्य नो प्रस्था० " गुरुनी पासे मासोयना तो ४२॥ य ५ शुरु १२ प्राय. શ્ચિત્ત આપવામાં આવ્યું હોય તે પ્રાયશ્ચિત્ત લેવાને પ્રારંભ ન કરનાર સાધ. भिसामागि साधुने ५५विसामोनि. २ ४२री शाय छे. (४) " प्रस्थाप्य नो निर्वि" गुरु द्वा२।२२ प्रायश्चित ४२वानु सूयन यु डाय, ते પ્રાયશ્ચિત્તને પ્રારંભ તે કરવામાં આવે, પણ જે તેનું પૂર્ણ રૂપે પાલન કરવામાં ન આવે, તે પ્રાયશ્ચિત્તનું પૂર્ણ રૂપે પાલન નહીં કરનાર સાધુને વિસાંભોગિક જાહેર કરી શકાય છે.
श्री. स्थानांग सूत्र :03