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________________ सुधा टीका स्था० १ ० १ सू०४२ वाग्निरूपणम् १०९ अथवा - सत्यम्, असत्यम्, तदुभयम्, तदनुभयमिति चत्वारो मनोयोगाः । एतेषु मनोयोगेषु एकदा एक एव सत्यादिरूपो मनोयोगो भवति न स्वन्यः । द्वादीनां विरोधेनाऽसंभवादिति ॥ सू० ४१ ॥ अथ वाग्योगं निरूपयति मूलम् - एगावई देवासुरमनुयाणं तंसि तंसि समयंसि ॥सू०४२॥ छाया - एका वाग् देवासुरमनुजानां तस्मिन् तस्मिन् समये ॥ ४२ ॥ टीका- 'एगा बई ' इत्यादि - देवासुरमनुजानां तस्मिन् तस्मिन् समये वाग=वाग्योग एका = एकत्व संख्या अथवा - सत्यमनोयोग, असत्यमनोयोग तदुभयमनोयोग और अनुभयमनोयोग इस प्रकार से मनोयोग चार प्रकार का होता है परन्तु फिर भी इन चार में से एक जीवको एक समय में एक ही सत्यादि रूप मनोयोग होता है अन्य नहीं होता है कारण कि एक समय में दो आदि मनोयोगों का होना विरोधयुक्त है इसलिये वह असंभवित होने के कारण नहीं होता है ॥ सू०४१ ॥ वाग्योग का निरूपण किया जाता है । 'एगावई देवासुर मणुघाणं तंसि तंसिं समयंसि ॥ ४२ ॥ मूलार्थ - देव, असुर और मनुष्यों को उस उस समय में एक ही चाग्योग होता है। टीकार्य - देव, असुर और मनुष्यों को एक एक समयमें एक एक ही वाग्योग होता है, इस तरह तथाविध मनोयोग पूर्वक होने से ही बाग्योग में एकता आती है। अथवा भनोयोगना नीचे प्रमाणे यार प्रहार छे - (१) सत्य मनोयोग, (२) असत्य भनोयोग, ( 3 ) तहुलय मनोयोग ( सत्यासत्य मनोयोग ) अने (૪) અનુભય મનાયેાગ. પરન્તુ એક સમયે એક જીવને આ ચારમાંથી એક જ મનેયાગ સંભવી શકે છે-એ ત્રણ આદિ મનેયાગ સભવી શકતા નથી. માટે તેમાં એકત્વ પ્રકટ કરવામાં આવ્યું છે. વાયાગનું નિરૂપણુ- गावई देवासुरमनुयाणं तसि तसि समयसि " ॥ ४२ ॥ સૂત્રાર્થ-દેવ, અસુર અને મનુષ્યમાં તે તે સમયે (યાયેાગમાં પ્રવૃત્ત થાય ત્યારે ) એક જ વાગ્યેાગ હાય છે. ટીકા--દેવ, અસુર અને મનુષ્યેામાં એક એક સમયે એક એક જ 66 શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૧
SR No.006309
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size42 MB
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