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स्थानाङ्गसूत्रे एकैच गतिर्भवति । अथवा-सर्वजीवपुद्गलानां स्थितावेव चैलक्षण्यं भवति नतु गौ, अतो गतेरेकत्वमिति ॥ मू० २५ ॥
आगति निरूपयति--
मूलम्-एगा आगई ॥ सू० २६ ॥ छाया-एका आगतिः ॥१० २६ ॥ व्याख्या-'एगा आगई' इति
आगमनम् आगतिः-नरकादेः प्रतिनियुत्तिः, सा एका-एकत्वसंख्याविशिष्टा। एकत्वं गतिवद बोध्यम् ॥ मू० २६॥ च्यवनं निरूपयति
मूलम्-एगे चवणे ॥ सू० २७ ॥ छाया-एकं च्यवनम् ॥ सू० २७॥
टीकार्थ-मरण के बाद मनुष्यभव से नारक आदि में जो जीव का गमन है उसी का नाम गति है यह गति एक है एकत्व संख्याविशिष्ट है। एक जीव की एककाल में ऋजु आदि गतियां नरकादि गति एक ही होती है। अथवा-सर्व जीव पुद्गलों का स्थिति में ही वैलक्षण्य होता है गति में नहीं इसलिये गति में एकता कही गई है ॥१० २५॥
अगति का निरूपण किया जाता है 'एगा आगई' इत्यादि ॥२६॥ मूलार्थ-आगति एक है ।२६।
टीकार्थ-आने का नाम आगति है अर्थात् नरकादिक गति से प्रतिनिवृत्ति होना लौटना सो आगति है, यह आगति एक है एकत्वसख्यावाली है इसमें एकता गति के समान जाननी चाहिये। सू०२६॥
ટીકાર્થ—-મરણ બાદ મનુષ્યભવમાંથી નીકળીને નારકાદિ જીવનું જે ગમન થાય છે, તેનું નામ ગતિ છે. તે ગતિ એક છે. એક જીવની એક કાળમાં જ આદિ ગતિ અથવા નરકાદિ ગતિ એક જ થાય છે. અથવા સર્વ જીવ પુદ્ગલોનું સ્થિતિમાં જ લક્ષણ્ય (વિલક્ષણતા વૈવિધ્ય) હેય છે, ગતિમાં હેતું નથી. તેથી જ ગતિમાં એકતા કહી છે. ૨૫ છે
હવે આગતિનું નિરૂપણ કરવામાં આવે છે-- " एगा आगई" त्याहि ॥ २६ ॥ सूत्रा--माति मे छ. ટકાઈ-નરકાદિ ગતિમાંથી પાછા આવવું તેનું નામ આગતિ છે. તે गत मे सध्यावाणी छे. तमाशतिना भर मेत समस्यी. ॥२६॥
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૧