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________________ ३९५ समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ. १४ ग्रन्थस्वरूपनिरूपणम् अन्यवार्थः-(जहा) तथा-येन प्रकारेण (अपत्तनातं) अपनजातम्-अनु. त्पमपक्षम् (सावासगा) स्वावासकात-स्वकुलाद (पविउं) प्लवितुम्-उत्पतितम् (मनमाणं) मन्यमानम्, परन्तु उत्पतितुम् (अचाइय) अशक्नुवन्तम् (तं तरुणं) तं तरुणम् आत्मानं मन्यमानं तं बालम् (दयापोत) द्विजपोतं पक्षिशिशुम (अपत्तजातं) अपनजावम्-पक्षरहितम् अतएव (अव्यत्तगम) अव्यक्तगमम् उड्डीय गन्तुमसमर्थ ज्ञात्वा (ढंकाइ) ढङ्कादयो मांसाभिरुचयः पक्षिणः (हरेज्जा) हरेयु:-चच्चा उत्थाप्य नयेयुः व्यापादयेयुरितिभावः। यथाऽजातपक्षं पक्षि मन्यमानम्' इच्छा करता हुआ उडने में 'अचाइयं-अशुक्नुवन्तम् अशक्तिवाला होता है ऐसा ही 'तं तरुण-तं तरुणम्' अपने को तरुण माननेवाला उस बाल अज्ञानी को 'अपत्तजातं-अपनजातम्' पंखरहित ऐसे दियापोतं-ब्रिजपोतम्' पक्षि शिशु कि जो 'अव्वत्तगर्म-अव्यक्त गमम्' उडकर जाने में असमर्थ है ऐसे पक्षिशावकको 'ढंकाइ-ढङ्कादयः' दत आदि मांसाहारी पक्षी 'हरेज्जा-हरेयुः' हर लेते हैं अर्थात् मार डालते हैं ॥२॥ ___अन्वयार्थ-जिस प्रकार अनुत्पन्न पांखवाले पक्षी के बच्चे जो कि अपने घोंसले से उडना चाहता है। किन्तु पांख न होने से उड कर जाने में असमर्थ है। ऐसे अपने को तरुण मानने वाले पांख रहित पक्षी के शिशु को ढङ्क वगैरह मांस भक्षक पक्षी मार डालते हैं। अर्थात् नन्हें पक्षी के शावक (बच्चे) जो कि घोसला छोड कर इधर उधर भट. कता रहता है। उसको मांस खानेवाले ढङ्क वगैरह बडे घातकी पक्षी पर ामा 'अचाइय-अशक्नुवन्तम्' मत जाय छ मेवा 'तं तरुण-त चहणम्' याताने १३] मानवाव से मास-मज्ञानीने 'अपत्तजात-अपत्र. जातम' ५५ विनाना मेवा दियापोत-द्विजपोतम्' पक्षिन मानी २ 'अव्वत्तगम-अव्यक्तगमम्' अरे वामां असमर्थ छ. मेवा पक्षिना सन्याने 'काइ-ढङ्कादयः' : विश२ मांसाहारी पक्षी 'हरेज्जा-हरेयुः' डश से. અર્થાત્ મારી નાખે છે. મારા અન્વયાર્થ–જે પ્રમાણે જેની પાંખ આવી નથી તેવું પક્ષીનું બચ્ચું કે જે પોતાના માળામાંથી ઉડવા ઈચ્છે છે પરંતુ પાંખ ન હોવાથી ઉડીને બહાર જવા શક્તિમાન નથી. એવા અને પોતાને તરૂણ માનવાવાળા પાંખ વિનાના પક્ષીના બચ્ચાને ટૂંક વિગેરે માંસભક્ષક પક્ષિયો મારી નાખે છે. અર્થાત્ નાના પક્ષિના બચ્ચાને કે જે માળે છેડીને આમ તેમ ભટકે છે, તેને માંસભક્ષણ પક્ષિઓ જબર જસ્તીથી મારીને ખાઈ જાય છે. એ જ પ્રમાણે એકલાજ-સમુ श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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