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________________ ३३२ सूत्रकृताङ्ग सूत्रे यस्तु कश्चित् (विओसियं) उपवशमितम् - मिथ्यादुष्कृतादिना उपशान्तमपि कलहादिकम् ( उदीरएज्जा) उदीरयेत् पुनः प्रकाशयेत् (से) सः - एवंविधोऽसौ (पावकम्मी पापकर्मा (अं) अन्ध इव चक्षुरहित इव (दंड पहं) दण्डपथम् - लघु मार्गम् (गाय) गृहीत्वा (अविओसिए) अन्यत्रशमितः - अनुपशान्तकलहः सर्वदैव फलह कुर्वाणः (घास ) घृष्यते - पीडयते ॥५॥ टीका- 'जे' यः पुरुषः 'कोहणे' क्रोधनः- क्रोधकारी 'हो' भवति क्रोध करोति क्रोधवशो भवतीति यात्रन् 'जगट्टमासी' जगदर्थभाषी, अन्यस्य यो दोषस्तस्य भाषणं करोति, विवदमानयोर्द्वयोर्यथा कथञ्चित् क्षमापणादिनोपशान्तेऽपि विवादे पुनस्तथोद्वेजनकरं वचनं वदेत् येन प्रज्वलित कोषवतोस्तयो पुनरपि विवादो यथा जायेत । एवं भूतो यः स जगदर्थभाषी । अथवा जयार्थ वगैरह द्वारा उपशान्त होने पर भी कलहादि का फिर से उद्घाटन करता है ऐसा पापी पुरुष अन्धे के समान छोटे मार्ग को अपना कर हमेशा कलह करते हुए स्वयं पीडित होता है ||५|| टीकार्थ- जो पुरुष को शील होता है, दूसरे के दोषों को प्रकाशित करता है, अथवा जो जयार्थ भाषी होता है अर्थात् जिस प्रकार के भाषण से विजय प्राप्त हो, उसी प्रकार का भाषण करनेवाला होता है तथा जो उपशान्त हुए कलह को पुनः प्रज्वलित करता है, जैसे झगड़ने वाले दो मनुष्यों का झगड़ा क्षमापणा आदि किसी उपाय से शान्त हो गया हो, फिर भी ऐसे वचन कहना कि जिससे दोनों का क्रोध फिर भड़क उठे और फिर उनमें झगडा हो जाय । इस प्रकार के ઉપશાન્ત થવાથી પણ ફરીથી કલહ વિગેરેને ઉપસ્થિત કરે છે, એવા પાપી પુરૂષ આંધળાની માફક ટૂંકા માર્ગીને અપનાવીને કાયમ કજીયા ક’કાસ કરીને पोते ४ दुःखी थाय छे. ટીકા—જે પુરૂષ ક્રોધી હાય છે; અને ખીજાના દાષા પ્રગટ કરે છે, અથવા જે યથાર્થ ભાષી-ખરૂ કહેનાર હાય છે, અર્થાત્ જે રીતના ખેલવાથી વિજય મળે તેવા પ્રકારથી ખેલે છે, તથા જે શાંત થયેલા કલર્ડને ફરીથી ઉપસ્થિત કરે છે, જેમકે-કજીયેા કરનારા બે મનુષ્યના ઝઘડા, ક્ષમાપના વિગેરે ઉપાચેાથી ઠંડા પડી ગયા હોય તે ફરીથી ઉપસ્થિત થાય તેવુ' એડલવુ’ અર્થાત્ મટી ગયેલા કજીયાની ખાખતમાં એવા વચને કહેવા જેનાથી તે श्री सूत्र तांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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