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________________ २५२ मलम् - सच्चं असेच्चं इति चिंतयंता, सूत्रकृताङ्गसूत्रे असाहु साहुतिं उदाहरंता । ० जे में जैणा वेणेइया अणेगे, पुट्ठा वि भावं विणई सुणीमं ॥ ३ ॥ छाया - सत्यमसत्य मिति चिन्तयन्तोऽसाधु साधु रित्युदाहरन्तः । इमे जना वैनयिका अनेके, पृष्टा अपि भावं व्यनेषुर्नाम ||३|| सकते। इस प्रकार अज्ञान पक्ष का अवलम्बन लेने के कारण ये विचार न करके मृषावाद करते हैं ||२|| 'सच्चं असच्च' इत्यादि । शब्दार्थ - 'सच्चं - सत्यम्' सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र रूप मोक्षमार्ग को 'असच्चं असत्यम्' यह ऐसा नहीं है ' इति - इति' इस प्रकार 'चित यंता - चिन्तपन्तः' मनमें मानते हुए तथा 'असाहु असाधुम' साधुके आचारसे रहित हैं उनको 'सानु - साधुः' यह साधु है 'ति इति' इस प्रकार 'उदाहरंता - उदाहरन्तः' कहते हुए 'जे मे- ये इमे' जो ये 'अणेगे -अनेके' अनेक 'वेणइया जणा-वैनयिका जनाः' विनयवादि मतावलम्बी मनुष्य हैं वे लोग 'पुट्ठो वि- पृष्टा अपि' कोई जिज्ञासु के द्वारा पूछने पर भी 'भावं नाम - भावं नाम' चिनयसे ही मोक्ष होता है इस प्रकार 'चिणईसु व्यनेषु' कहते हैं ||३|| આ અજ્ઞાનપક્ષનુ અવલમ્બન લેવાને કારણે તેઓ વાસ્તવિકને વિચાર ન કરતાં મૃષાવાદ જ કરે છે. રા 'सच्च' असच्च' इत्याहि शष्टार्थे—'सच्चं-सत्यम्' सत्य मेवा सभ्य | दर्शन ज्ञान थारित्र ३५ मोक्ष भागने 'असच्च - असत्यम्' मा भार्ग' येवो नथी. 'इति - इति' प्रभा 'चि'तयंता - चिन्तयन्तः' भनभां मानीने तथा 'असाहु - असाधुम्' साध्वाचार विनाना होय तेमाने 'साहु साधुः' मा साधु छे, 'त्ति इति' म प्रमाणे उदाहरता - उदाहरन्तः ' 'हेवावाजा 'जे मे- ये इमे' मा 'अणेगेअनेके' ने 'वेणइया जणागा-वैनयिका जनाः' विनय वाही भतने अनुसरनाशो तेथे 'पुट्ठावि- पृष्टा अपि नाम - भावं नाम' विनयथी मोक्ष हयनेषुः ' हेता रहे छे ॥३॥ શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૩ अध कज्ञासु पूछवा छतां पशु 'भाव प्राप्त थाय छे से प्रमाणे विणइ सु
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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