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________________ २०८ सूत्रकृताङ्गसूत्रे 'पडिपुन्न' प्रतिपूर्ण सर्वविरत्याख्याम्-मोक्षगमनककारणम् 'अणेलिसं' अनीदृशम् -अनन्यसदृशम् निरुपम मित्यर्थः 'धम्म' धर्मम्-श्रुतचारित्ररूपम् 'अक्खाई' आख्याति-प्रतिपादयतीति । मनोवचनकायेरात्मनो रक्षको जितेन्द्रियः कषायना. शकः प्रतिरुद्धकर्मद्वार एवाऽनन्यसदृशं सर्वदोषरहितं सर्वतो विशुद्ध धर्ममाख्याति, स एव च आश्वासद्वीपो भवितु महतीति भावः ॥२४॥ मूलम्-तमेव अविजाणंता, अबुद्धा बुद्धमाणिणो।। बुद्धा मोत्तिय मन्नंता, अंते एए समाहिए ॥२५॥ छाया-तेमेवाऽनिजानानाः, अबुद्धा बुद्धमानिनः । बुद्धाः स्म इति मन्यमाना अन्ते एते समाधेः ॥२५॥ माधु शुद्ध अर्थात् समस्त दोषों से रहित, प्रतिपूर्ण अर्थात् मोक्षप्राप्ति के असाधारण कारण सर्वविरति रूप, और जिसके समान कोई अन्य धर्म नहीं हैं, ऐसे श्रुतचारित्र धर्म (निरतिचार संयम)का कथन करता है। जो साधु मन वचन काय से आत्मा का रक्षक है, जितेन्द्रिय है, कषायों का विनाशक है, कर्मों के द्वार को रोकने वाला है, वही अनु. पम, सर्व दोषों से रहित एवं सर्वथा विशुद्ध धर्म का प्रतिपादक होता है। वही संसारी जीवों के लिए द्वीप के समान है ॥२४॥ 'तमेव अविजाणता' इत्यादि। शब्दार्थ-'तमेव अविजाणता-तमेवमविजानानाः' उस प्रतिपूर्ण धर्मको न जानते हुए 'अबुद्धा बुद्धमाणिणो-अबुद्धा बुद्धमानिनः' अज्ञानी होते हुए भी अपने को ज्ञानी मानने वाले 'बुद्धा मोत्तिय मन्नंता શુદ્ધ અર્થાત સઘળા દેથી રહિત પ્રતિપૂર્ણ અર્થાત્ મોક્ષ પ્રાપ્તિના અસા. ધારણ કારણ સર્વવિરતિ રૂપ અને જેની બારબર બી જે કોઈ ધર્મ નથી એવા શ્રતચારિત્રધર્મ (નિરતિચાર સંયમ) નું કથન કરે છે. જે સાધુ મન, વચન, અને કાયાથી આત્માના રક્ષક છે, જીતેન્દ્રિય છે. કષાયને નાશ કરવાવાળા છે, કર્મોના દ્વારને રેવાવાળા છે, તે જ અનુપમ, સવ દોષોથી રહિત અને સર્વથા વિશુદ્ધ ધર્મનું પ્રતિપાદન કરવાવાળા હોય છે, એજ સંસારી જીવને માટે દ્વીપ સરખા છે. ૨૪ 'तमेव अविजाणंता' त्या साथ--तमेव अविजाणंता-तमेवमविजानानाः' में परिण यमन 1. GAINERI 'अबुद्धा बुद्धमाणिणो-अबुद्धा बुद्धमानिनः' अज्ञानी हा छतi ! श्री सूत्रतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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