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________________ समयार्थबोधिनो टीका प्र. श्रु. अ. ११ मोक्षस्वरूपनिरूपणम् २०७ ___ अन्वयार्थ:--(आयगुत्ते) आत्मगुप्तो मनोवाकायैः (सया दंते) सदा-सर्वकालं दान्तो वश्येन्द्रियः (छि नसोए) छिन्नस्रोता:-छिन्नानि कर्माश्रवस्रोतांसि येन स तथा, (अणासवे) अनाश्रव-निर्गतपाणातिपातादिरूपानवद्वारः, इत्थंभूतः (जे) यः (पडिपुन्न) प्रतिपूर्णम् (अणेलिसं) अनीदृशमुपमारहितम् (सुदं धम्म अक्खाइ) शुद्धम्-दोषरहितं धर्म-श्रुतचारित्ररूपम् आस गति कथयति स आश्वासद्वीपो भवतीति ॥२४॥ टीका-'आयगुत्ते' आत्मगुप्त:-मनोवाकार्यगुप्त आत्मा यस्य स आत्मगुप्तः । 'सया दंते सदा दान्त:-वश्येन्द्रियः 'छिन्नसोए' छिन्नानि-नाशितानि संसारस्य स्रोतांसि-कर्मागमनमार्गरूपाणि येन स छिन्नस्रोताः। तथा-'अणासवे' अनाश्रय:-निर्गत: आश्रया-प्राणातिपातादिकः कर्मागमनरूपो यस्मात् सोऽना. सवः, 'जे' यः-एवंभूतः सः 'सुद्ध' शुद्धम्-प्राणातिपतादिसमस्तदोषरहितम् वही 'पडिपुण्ण-परिपूर्ण' परिपूर्ण 'अणेलिस-अनीहशम्' और उपमारहित सुद्धं धम्मं अक्खाइ-शुद्धं धर्मम् आख्याति' शुद्ध धर्मका कथन करता है ॥२४॥ अन्वयार्थ--जो आत्मा को गोपन करने वाला, इन्द्रियों को सदा वश में करने वाला, कर्म के स्रोतों-आश्रय दारों को निरुद्ध कर देने वाला, आप्रव से रहित जो मुनि परिपूर्ण अनुपम और शुद्ध धर्म का कथन करता है वही आश्वास का द्वीप रूप है ॥२४॥ टीकार्थ--मन वचन और काय से जिसका आत्मा गुसि युक्त है जो सदा जितेन्द्रिय है, संसार के कारण आश्रव द्वारों को रोकनेवाला और माणातिपात आदि कर्मके आगमन रूप आस्रव से रहित है वह 'पडिपुण्ण-प्रतिपूर्णम्' अ 'अणेलिसं-अनीदृशम्' भने उपमा दिनानु 'सुद्ध धम्मं अक्खाइ-शुद्धं धर्मम् आख्याति' शुद्ध मनु थन ३२ छे. ॥२४॥ અન્વયાર્થ—જેઓ આત્માને શેપન કરવાવાળા ઈન્દ્રિયોને સદા વશમાં રાખવાવાળા કર્મના અંતે-આસ્રવ દ્વારોને રોકવાવાળા-આશ્રવથી રહિત છે મુનિ પરિપૂર્ણ અનુપમ અને શુદ્ધ ધર્મનું કથન કરે છે. તેજ આશ્વાસના દ્વીપરૂપ છે. ૨૪ ટીકાથ–મન, વચન અને કાયાથી જેઓને આત્મા ગુપ્તિ વાળે છે, જે હમેશાં જીતેન્દ્રિય છે, સંસારના કારણે એવા આસ્રવ દ્વારને રકવાવાળા અને પ્રાણાતિપાત વિગેરે કર્મના આગમન રૂપ આસવથી રહિત છે, તે સાધુ श्री सूत्रतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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