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________________ ११४ सूत्रकृताङ्गसूत्र किञ्च-'इस्थीसु' स्त्रीषु सत्तेय' सक्तश्च 'पुढो' पृथक पृथक् तदीयहासावलोकनादौ 'बाले' बाल:-सदसद्विवेकरहितो भवतीति, वनितामुखविलोकनं न द्रव्यमन्तरेण संभवत्तीति एतदर्थम् 'परिग्गई परिग्रहं परिग्रहं चापि पकुव्वमाणे प्रकुर्वाण:-पापं कर्मसंचिनोति ॥८॥ मूलम्-वेराणुगिद्धे णिचयं करेइ, इओ चुए स इदमट्टदुग्गं । तम्हा उमेहावी समीक्ख धम्म, चेरे मुंणी सवउ विप्पमुक्को। छाया-वैरानुगृद्धो निचयं करोति, इतच्युतः स इदमर्थदुर्गम् । तस्मात्तु मेधावी समीक्ष्य धर्म, चरेन्मुनिः सर्वतो विषमुक्तः ॥९॥ पार्श्वस्थ एवं कुशीलों के धर्मका सेवन करता है। सम्यक अनुष्ठान से हीन होने से संसार सागर के कीचड़ में फंस कर दुःखी होता है। इसके अतिरिक्त जो स्त्रीके हास्य, अवलोकन आदि में आसक्त होता है, वह सत् असत् के विवेक से विकल अज्ञानी होता है स्त्रिका सेवन या मुखावलोकन अर्थ के विना नहीं होता, इस कारण जो परि. ग्रह का संचय करता है, वह वस्तुतः पापकर्म का संचय करता है। 'वेराणु गिद्धे' इत्यादि। शनार्थ--'वेराणुगिद्धे- वैरानुगृद्धः' जो पुरुष प्राणियों के साथ वैर करता है 'णिचयं करेइ-निचयं करोति' वह पापकर्म की वृद्धि करता है 'इओ चुए स इहमट्ठदुग्गं-इतश्च्युतः स इहमर्थदुर्गम्' वह मरकर नरक आदि दुःखदायो स्थानों में जन्म लेना है 'तम्हा उ मेहावी मुणीછે. તે પાર્શ્વસ્થ અને કુશલેના ધર્મનું સેવન કરે છે, સમ્યફ અનુષ્ઠાનથી રહિત હોવાથી સંસાર રૂપી સાગરના કાદવમાં ફસાઈ જઈને દુખી બને છે. આ સિવાય જે સ્ત્રીના હસ્ય, અવલોકન વિગેરે ચેષ્ટાઓમાં આસક્ત થાય છે. તે સત્ અસત વિગેરેના વિવેકથી રહિત અજ્ઞાની હોય છે. સ્ત્રીનું સેવન અથવા મુખનું અવલોકન અર્થ-ધન વિના થઈ શકતું નથી. તે કારણે જે પરિગ્રહને સંચય કરે છે, તે ખરી રીતે પાપકર્મને જ સંચય કરી રહેલ છે. ૮ __ 'वेराणुगिद्धे' त्याह शा- 'वेराणुगिद्धे-वैरानुगृद्ध' रे ५३५ प्राणियोनी साथै ३२ ४२ छ, णिचयं करेइ-निचयं करोति' ते पा५ भने। पधारे।। ४२ . 'इओ चुए स इहमट्टदुग्गम्-इतच्युतः स इहमर्थदुर्गम्' ते भरीने २४ वि३ ५ ५ श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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