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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ३ उ. २ अनुकूलोपसर्गनिरूपणम् ६५ छाया-पंते संगा मनुष्याणां पाताला इवाऽताः । क्लीवा यत्र क्लिश्यन्ति ज्ञाति संगैश्चमूच्छिताः ॥१२॥ ___ अन्वयार्थ:--(एए) एते पूर्वोक्ताः (संगा) सामाषितस्वजनसंबन्धाः (मणुस्साणं) मनुष्याणाम् (पायाला इव) पाताला इव-समुद्रवत (अतारिमा) अतार्याः दुस्तराः (जत्थ) यत्र येषु संगेषु (नाइसंगेहिं) ज्ञातिसंगः (मुच्छिया) मूच्छिता-गृद्धिभावमुपागताः (कीवा) क्लीवाः कातराः असमर्थाः (किस्संति) क्लिश्यंति क्लेशमनुभवंति संभारान्तर्वतिनो भवन्तीति ॥१२॥ टीका--'एए संगा' एते पूर्वोक्ताः संगा सज्यन्ते इति संगाः पितृमात. प्रभृतीनां मोहपाशपातकाः तात्कालिकाऽनुकूल वेदनीयाः संबन्धाः, नवीनकों शब्दार्थ-'एए-एते' यह पूर्वोक्त 'संगा-सङ्गाः' मातापिता स्वजन आदि का संबन्ध 'मणूसाणं-मनुष्याणाम्' मनुष्यों के लिए 'पापालाइव-पाताला इव' समुद्र के समान 'अतारिमा-अतार्याः' दुस्तर है 'जत्थ-यत्र' जिस संग में 'नाइसंगेहि-ज्ञातिसंगैः' ज्ञातिसंसर्ग में 'मुच्छिया-मूच्छिताः' आसक्त हुए 'कीवा-क्लीया' असमर्थ पुरुष किस्संति-क्लिश्यन्ति' दुःखित होते हैं ॥१२॥ अन्वयार्थ--ये पूर्वोक्त मंग अर्थात् मातापिता आदि स्वजनों के सम्बन्ध मनुष्यों के लिए समुद्र के समान दुस्तर हैं जिनमें स्वजन संसर्ग से मूर्छित हुए कायरजन क्लेश का अनुभव करते हैं या संसार में परिभ्रमण करते हैं ॥१२॥ टीकार्थ-ये पूर्वोक्त संग अर्थात् माता पिता आदि, स्वजनों के सम्बन्ध शहा - 'एए-एवे' मा पूर्वरित 'संगा-सङ्गाः' भाता-पिता स्तन वगैरेन। समय 'मणूपाणं-मनुष्याणाम्' मनुष्याना माटे पायाला इव-पाताला इव' समुद्रना समान 'अतारिमा-अतार्याः' हुस्तर छे. 'जत्थ-यत्र'२ सभा 'नाइ संगेहि-ज्ञातिसंगैः' शातिस सभा 'मुच्छिया-मूर्छिताः' भासत थयेस कीवाक्लीवाः' असमय ५३५ 'किस्संति क्लिश्यन्ति भी थाय 2. ॥१२॥ સૂત્રાર્થ–માતા-પિતા આદિ સ્વજનોના સંબંધરૂપ પૂર્વોક્તસંગ માણસોને માટે સમુદ્રના સમાન સ્તર છે. સ્વજનોના મેહમાં આસક્ત થયેલા મૂછભાવને કારણે તેમને સંસર્ગ નહી છોડી શકનારા-કાયર માણસે આ સંસારમાં પરિ ભ્રમણ કર્યા જ કરે છે અને જન્મ, જરા અને મરણનાં દુઃખને અનુભવ ર્યા જ કરે છે. ૧૨ા ટીકાWઆ પહેલાં કહેલ માતા-પિતા વિગેરે વજન સંબંધીજનોને મોહ શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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