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________________ ७०० सूत्रकृताङ्गसूत्रे या-ये चाऽबुद्धा महाभागा वीरा असम्यक्त्वदर्शिनः । अशुद्ध तेषां पराक्रान्तं सफलं भवति सर्वशः ॥२२॥ अन्वयार्थ:--(जे याऽबुद्धा) ये चाऽबुद्धाः-धर्म प्रति अविज्ञातपरमार्थाः (महाभागा) महाभागा:-जगत्पूजनीयाः (वीरा) वीराः-सुभटा, अपि (असमत्तदंसिणों) असम्यक्त्वदर्शिन:-मिथ्यादृष्टयः सन्ति तदा-(तेसिं परक्तं असदं) तेषां बालानां तपो दानादिषु पराक्रान्तं पराक्रमणमुधमरूपम् तत् अशुद्धम्अविशुद्धिकारि प्रत्युत कर्मबन्धनाय (मनसो सफलं होइ) सर्वश:-सर्वप्रकारेण सफलं कर्मबन्धायैव भवतीति ॥२२॥ 'जे य बुद्धा' इत्यादि। शब्दार्थ--'जे याऽबुद्धा-ये चाऽबुद्धाः' जो पुरुष धर्म के रहस्यको नहीं जानते हैं 'महाभागा-महाभागाः' किन्तु जगत् में पूजनीय माने जाते हैं 'वीरा असंमत्तदंसिणो-वीराः असम्यक्त्वदर्शिनः' एवं शत्रु की सेना को जीतनेवाले वीर है 'तेसिं परक्कंतं असुद्धं-तेषां परा. कान्तम् अशुद्धम्' उनका तपदान आदि में उद्योग अशुद्ध है 'सव्यसो सफलं होइ-सर्वशः सफलं भवति' और वह कर्मबन्ध के कारणरूप होता है ।।२२। __ अन्वयार्थ--जो पुरुष जगत्पूजनीय हैं, वीर हैं किन्तु धर्म के परमार्थ को नहीं जानते और मिथ्यादृष्टि हैं, उनका तप दान आदि अशुद्ध है और वह कर्मबन्ध रूप फल का जनक है ॥२२।। 'जे याऽबुद्ध।' त्यादि शहाथ-'जे याऽबुद्धा-ये चाऽबुद्धाः' २ ५३५ धमन। २४त्यने तता नथी 'महाभागा-महाभागाः' ५२' तुगतमा पूजनीय मानवामा मा छे. वारा असमत्तदसिणा-वीराः असम्यक्त्वदर्शिनः' तथा शत्रुनी सेनान वाणा पी२ छ, 'सेसि परकंतं असुद्धं-हेषां पराक्रान्तम् अशुद्धम्' भनी त५, हान विगेरेमा धोin शुद्ध छे. 'सव्वसे सफलं हे।इ-सर्वशः सफलं भवति' मने તે કર્મબંધના કારણરૂપ થાય છે. ૨૨ ____-या-२ ५३थे। पूजनीय छ, वा२ छ, ५२'तु ना ५२. માર્થને જાણતા નથી. અને મિથ્યા દૃષ્ટિવાળા હોય તેઓનું તપ, દાન, વિગેરે અશુદ્ધ કહેવાય છે, અને તે કર્મ બન્ધરૂપ ફળ આપનારું છે. મારા શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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