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________________ ६७२ सूत्रकृताङ्गसूत्रे मोक्षध प्रवर्तते इति, बालवीर्य तु जीवस्य दुः कदायि, दुःखमुपभुञानस्य बालवीर्य तोऽशुभस्थानं नरकादिकमेव वर्द्ध ते इति भावः ॥२१॥ मूलम्-ठाणी विचिहठाणाणि चइस्संति ण संसओ। अणियत्ते अयं वासे पायएंहिं सुहीहि यं ॥१२॥ छाया--स्थानिनो विविधस्थानानि त्यक्ष्यन्ति न संशयः। __अनियतोऽयं वासो ज्ञातकैः सुहृद्मिश्च ॥१२॥ अन्वयार्थः-(ठाणी) स्थानिनः-स्थानपन्तः-इन्द्रचक्रवर्यादयः (विविहठाणाणि चइस्संति ण संसओ) विविधस्थानानि-नानामकारकोत्तममध्यमस्थानानि ही अंगीकार करके विचरते हैं, मोक्ष के लिए ही प्रवृत्ति करते हैं। इससे विपरीत जो बालवीर्य है, वह दुःख देने वाला है। दुःख को भोगने वाला बालवीर्यवान् पुरुष नरक आदि गतियों को ही बढता है ।११॥ 'ठाणी' इत्यादि। शब्दार्थ-'ठाणी-स्थानी' उच्चपद पर रहे हुये सभी विविह ठाणापिा चइस्संति ण संसओ-विविधस्थानानि त्यक्ष्यन्ति न संशयः' अपने अपने स्थानों को छोडदेंगे इसमें संदेह नहीं है 'णाइएहिं य सुहीहि' जातिभिः सुहृद्धि श्च तथा ज्ञाति और मित्रों के साथ 'अयं वासेअयं वासः' जो संवास है वह भी अणियते-अनियतः' अनियत है ।।१२।। अन्वयार्थ-उत्तम स्थान के धनी इन्द्र चक्रवत्ती आदि नाना प्रकार के उत्तम मध्यम अधम स्थानों को त्याग देगे, इसमें संशय नहीं है। મોક્ષની કામનાવાળા મક્ષ માગને જ સ્વીકાર કરીને વિચારે છે. તેઓ મોક્ષ માટે જ પ્રવૃત્તિ કરે છે. આનાથી વિપરીત જેઓ બાલવીર્ય છે, તે વખ આપવાવાળા હોય છે, દુઃખ ભેગવનાર બાલવીર્યવાળે પુરૂષ નારક વિગેરે ગતિમોનેજ વધારે છે. ૧૧ 'ठाणी' त्या avell-'ठाणी-स्थानी ! अस्य ५४ ५२ २७सा या 'विविहठाणाणि चइसति ण संसओ-विविधस्थानाति त्यक्षन्ति न संशच :' पोत पाताना स्थानान छाडी देशे तेभा मशय नथी. 'णाइएहिं य सुहीहि-ज्ञातिभिः सुखलिव' तथा ज्ञातिभे। भने भित्रीनी साथे 'अयं वाले-अयं वासः' ने संपास छ त ५ 'अणियते-गनियत:' यनियत छे. ॥१२॥ અન્વયાર્થ-ઉત્તમ સ્થાનવાળા ઈન્દ્ર, ચક્રવર્કતો વિગેરે અનેક પ્રકારના ઉત્તમ, મધ્યમ, અને અધમ સ્થાને ત્યાગ કરશે તેમાં સંરાય નથી, જ્ઞાતિ શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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