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________________ • २ 19 मूलम् - मायरं पियरं पोस एवं लोगो भfares | सूत्रकृताङ्गसूत्रे 9 एवं ख लोइयं ताय जे पालतिय मायरे ॥ ४ ॥ खु छाया - मातरं पितरं पोषय एवं लोको भविष्यति । एवं खलु लौकिकं तात ! ये पालयन्ति मातरम् | ४ || अन्वयार्थ : - - ( ताय) हे तात (मायरं पियरं) मातरं पितरं = जननीजनकौ 'पोस' पोषय पालयेत्यर्थः ' एवं ' एवं मातापितृपोषणेन 'लोगो' लोकः परलोक: (भविस्सइ) भविष्यति (ताप) हे तात ( एवं ) एवमेतदेव (खु) खलु = निश्चयतः (लोय) लौकिक लोकाचारः (जे) ये (माथरं ) मातरम् (पालंति) पालयंतीति । तस्य लोको भवतीति ॥ ४ ॥ आशय यह है कुटुम्बीजन आकर साधु से कहते हैं हे पुत्र ! तुम्हारा पिता वृद्ध है, भगिनी छोटी है और भ्राता असहाय है। इन सब को तुम कैसे स्वागते हो ? ॥३॥ शब्दार्थ- 'ताय - तात' हे तात! 'मायरं पियरं मातरं पितरं माता और पिता का 'पोस-पोषय' पोषण करो 'एवं एवम्' माता पिता का पोषण करने से ही 'लोगो-लोको' परलोक 'भविस्सह-भविष्यति' होगा 'ताय - तात' हे तात! 'एवं एवम्' यही 'खु खलु' निश्चय से 'लो!यंलौकिक' लोकाचार है कि 'जे-ये' जो 'मायरं मातरम्' माता को 'पालंति - पालयन्ति' पालन करते हैं उनको परलोक की प्राप्ति होती है || ४ ॥ अन्वयार्थ - हे पुत्र ! माता पिता का पालन करो। ऐसा करने से तुम्हारा परलोक सुधरेगा । हे पुत्र ! निश्चय ही यही लोक में उत्तम आचार સયમના માર્ગે થી વિચલિત કરવાના પ્રયત્ન કરે છે. આ પ્રકારના અનુકૂળ ઉપસર્યાં આવી પડે ત્યારે અલ્પસત્ત્વ સાધુએ સયમના માના પરિત્યાગ કરીને ફરી ગૃહવાસના સ્વીકાર કરી લે છે. ાગાથા ! शब्दार्थ -- 'ताय - तात' हे तात! 'मायरं पियरं मातरं पितरं भाता भने पितानु' 'पोस-पोषय' पोषण रे। ' एवं - एवम्' भाता पितानुं घोषशु ४२वाथी ४ 'लोगो - लोकः ' पर 'भविस्सइ - भविष्यति' सुधरशे 'ताय-तात.' हे तात ! ' एवं - एवम्' मा 'खु खलु' निश्चयथी 'लोइयं - लौकिक' सोयार छे 'जे - ये' ने 'मायरं मातरम्' भाताने 'पा ंति - पालयन्ति' पालन पुरे छे, तेभने परसाउनी प्राप्ति थाय छे ||४|| સૂત્રા-હે પુત્ર! તું માતાપિતાનું પાલન કર. એવુ* કરવાથી તારા પરલેાક સુધરી જશે. હે પુત્ર! લેકમાં તેને જ ઉત્તમ આચાર ગણુવામાં શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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