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________________ समयार्थचोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ६ उ.१ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ५३७ मूलम्-किरियाँकिरियं वेणइयाणुवायं, अण्णाणियाणं पडियञ्च ठाणं । से सव्ववायं इति वेयंइत्ता, उवट्रिए संजमदीहरायं ॥२७॥ छाया-क्रियाऽक्रिये वैनयिकाऽनुवाद, भज्ञानिकानां प्रतीत्य स्थानम् । स सर्ववादमिति वेदयित्वा, उपस्थितः संयमदीर्घरात्रम् ॥२७ अन्ययार्थः-(करियाकिरियं) क्रिपाऽकिये-क्रियावायक्रियावादिमतम् (वेणइ. याणुवाय) वैनयिकानुवाद-मतम् (मण्णाणियाण) अज्ञानिकानाम् (ठाणं) स्थान 'किरियाकिरियं' इत्यादि। शब्दार्थ-'किरियाकिरियं-क्रियाऽक्रिये' क्रियावादी अक्रियावादी मतको तथा 'वेणइयाणुवायं-चैनयिकानुवाद' विनयवादी के कथनको तथा 'अण्णाणियाण-अज्ञानिकानाम्' अज्ञानवादियों के ठाणं-स्थानम्' मतको 'पडियच्च-प्रतीत्य' जानकर 'से इति-स इति' ये वीर भगवान् इसमकार 'सत्यवायं-सर्ववादम्' सब वादियों के मतको 'वेयइत्ता-वेदयित्वा' जानकर के 'संजमदीहरायं-संघमदीघरात्रम्' जीवन भरके लिये 'उचट्टिए-उपस्थितः' स्थित हुए हैं ॥२७॥ अन्वयार्थ-क्रियावादियों के, अक्रियावादियों के, पैनयिकों के तथा अज्ञानवादियों के मत को जान कर, इस प्रकार से सभी वादों को जान कर भावान महावीर जीवनपर्यन्त संयम में स्थित रहे ॥२७॥ " किरियाकिरिय" त्याह शाय-'किरियाकिरिय-क्रियाऽक्रिये' या पी मने जियाचाहीना भतने तथा 'वेणइयाणुवाय-चैनयिकानुवादम्' विनयवाहिनाथनने तथा 'अण्णाणि याणं-अज्ञानिकानाम्' मज्ञानाहियाना 'ठणं-स्थानम्' भतने 'पडियच्च-प्रतीत्य' लाने से इति-स इति' ते पा२ समान् ॥ प्रमाणे 'सव्यवायं-सर्ववादम' सधा पाहयाना भतने 'येवइत्ता-वेदयित्वा' onीन 'संजमदीहराय-संयमदी. राम स०° पनपन्त 'उवदिए उपस्थितः' स्थित २९या छ. ॥ २७ ॥ સવાર્થક્રિયાવાદીઓના, અક્રિયાવાદીએના, વૈનાયિકોના અને અજ્ઞાનવાદીઓના મતને જાણીને, આ પ્રકારે સઘળા વાદેના રવરૂપને જાણું લઈને, ભગવાન મહાવીર જીવનપર્યત સંયમની આરાધનામાં અવિચલ રહ્યા હતા ૨૭ શ્રી સૂત્ર કુતાંગ સૂત્ર ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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