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________________ सूत्रकृताङ्गसूत्रे 'सुहम्मा सभा च' सुधर्मा सभा इय, बहुक्रीडास्थानयुक्तत्वात् । 'जह' यथा -सव्य धम्मा' सर्वेऽपि धर्माः 'निव्याणसेह।' निर्वाणश्रेष्ठा मोक्षमधाना भवन्ति, कुप्रावचनिका अपि निर्वाणफलकमेव स्वदर्शनं ब्रुयते' तथा-'णायपुत्ता' ज्ञातपुत्रात् 'परं परमधिकम् 'नाणी' ज्ञानी नास्ति सर्वथैव हि भगवान् अपरज्ञानिभ्योऽ. धिकज्ञानवान् अस्तीति ॥२४॥ मूलम्-पुढोवमे धुगइ विगयगेही न सणिहिं कुबइ आसुपन्ने। तरिउं समुदं व महाभयोघं अभयंकरे वीर अणंतचक्रव।२५। छाया-पृथिव्युपमो धुनोति विगतगृद्धिः, न सन्निधि करोत्याशुपज्ञः। तरिया समुद्रमिय महाभवौघम्, अभयङ्करो वीरोऽनन्तचक्षुः ॥२५॥ जैसे सभाओं में सुधर्मा समा श्रेष्ठ है, क्योंकि वह अनेक क्रीडा. स्थानों से युक्त है । अथवा जैसे सभी धर्म मोक्ष प्रधान हैं, क्योंकि कुप्रायचनिक भी अपने दर्शन को निर्वाण रूप फल देने वाला ही कहते हैं, इसी प्रकार ज्ञातपुत्र से अधिक ज्ञानी कोई नहीं है अर्थात् अन्य ज्ञानियों से वही उत्कृष्ट ज्ञानी हैं ।।२४॥ 'पूहोवमे' इत्यादि। शब्दार्थ-'पुढोयमे-पृथिव्युपमः' भगवान महावीरस्वामी पृथ्वीके समान सब प्राणियों के आधार भूत है 'धु गइ-धुनोति' तथा वे आठ प्रकार के कर्ममलों को दूर करने वाले हैं विगयगेही-विगतगृद्धिः, भगवान् बाह्य और आभ्यन्तर वस्तुओं में गृद्धि-आमक्तिरहित है 'आसुपन्ने-आशुप्रज्ञः' वे शीघ्रबुद्धि वाले हैं 'ण संनिहिं कुव्यइ-न જેમ સભાઓમાં સુધર્મા સભા શ્રેષ્ઠ છે, કારણ કે તે અનેક કીડાસ્થાનોથી યુક્ત છે, અથવા જેમ સઘળા ધર્મો મોક્ષપ્રધાન છે, કારણ કે કુમારચનિકે પણ પિતાનાં દર્શનને નિર્વાણરૂપ ફલ પ્રદાન કરનાર જ કહે છે, એ જ પ્રમાણે જ્ઞાતપુત્ર કરતાં અધિક જ્ઞાની કોઈ નથી. તેઓ જ સંસ્કૃષ્ટ જ્ઞાની છે. ૨૪ " पूढायमे" त्या शाय-'पुढोवमे-पृथिव्युपमः' भगवान् महावापाभी पृथ्वीसरीमा मा प्राणियोना सारभूत ता. 'धुणइ-धुनोति' तथा तेगा भाई प्रारना भने २ ४२वाया। छे. 'विगयगेही-विगतगृद्धिः' भवान् मा भने मास्यन्तर १२तुसामा द्धि-मासहित २डित सता 'आसुपन्ने-आशुप्रज्ञः' तेन्मे। શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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