SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ सूत्रकृताङ्गसूत्रे --- - - मूलम्-एवं विप्पडिबन्नेगे अप्पणा उ अजायणा। तमाओ ते तमं जति मंदा मोहेण पाउडा ॥११॥ छाया--एवं विप्रतिपन्ना एके आत्मना तु अज्ञाः । तमस्ते तमसो यान्ति मन्दा मोहेन प्रावृताः ॥११॥ अन्वयार्थः--(एवं) एवमनेन प्रकारेण (विपडिवना) विषतिपन्नाः साधु सन्मार्गद्वेषिणः (एके) एके केचन-अनार्याः (अप्पणा उ) आत्मना तु (अजायणा) अज्ञाः विवेकाविज्ञाः (मोहेन पाउडा) मोहेन प्रावृताः मोहेन मिथ्यादर्शनरूपेण मावृता आच्छादितमतयः (ते) ते (तमाओ) तमस: अज्ञानरूपान्धकारात् (तमे) तमा उत्कृष्टमज्ञानान्धकार जिति) यान्ति गच्छन्तीति ।।११।। शब्दार्थ-एवं-एवम्' इस प्रकार 'विष्यडियन्ना-विप्रतिपन्ना' साधु और सन्मार्ग के द्रोही 'एगे-एगे' कोई कोई 'अप्पणा उ-आत्मना तु' स्वयं 'अजायणा-अज्ञाः' अज्ञ जीव 'मोहेण पाउडा-मोहेन प्रवृता' मोह से ढके हुए अर्थात् मिथ्यादर्शन से ढकीहुइ मतियाले हैं 'ते-ते' वे 'तमाओ-तमसः' अज्ञान रूप अंधकारसे तमं-तमः' उत्कृष्ट अज्ञान रूपी अन्धकार को 'जति-यान्ति' प्रवेश करते हैं ॥११॥ अन्वयार्थ-जो लोग इस प्रकार साधु ओं के विरोधी हैं, अनार्य हैं, विवेकविकल हैं, मोह से अच्छादितमति वाले हैं, ते वे अज्ञान से अज्ञान की ओर जाते हैं अर्थात् अज्ञानान्धकार से उत्कृष्ट अन्धकार की दिशा में अग्रसर होते हैं ॥११॥ Avat - एवं-एवम्' मा प्रमाणे 'विप्पडियन्ना-विप्रतिपन्नाः' साधु भने सन्मानाद्रीडी 'एके-एके' जो 'अप्पणा उ-आत्मना तु' पोते 'अज - यणा-अज्ञाः' म १ 'मोहेण पाउडा मोहेन प्रवृताः' भाडा ढiसा छ अर्थात् मिथ्या शनयी ढली भति छ. 'ते-ते' तेयो 'तमाओ-तमसेः' अज्ञान ३५ अ५४२थी 'तमं-तमः' (कृष्ट मान ३५ी अध४।२ने 'जंति-यन्ति' प्राप्त उरे छे. ॥११॥ સૂત્રાર્થ-જે લોકે આ પ્રકારે સાધુઓના વિરોધી હોય છે, અનાર્ય અને વિવેકથી વિહીન હેય છે, અને મેહથી આચ્છાદિત મતિવાળા હોય છે, તેઓ એક અજ્ઞાનમાંથી બીજા અજ્ઞાન તરફ જાય છે એટલે કે અજ્ઞાન રૂપ અંધકારમાં ડૂબેલા તે લેકે નરક આદિ રૂપ ઉત્કૃષ્ટ અંધકારની દિશામાં અગ્રેસર થાય છે. ગાથા ૧૧ શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy