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________________ ३४६ सूत्रकृताङ्गसूत्रे मूलम्-जइ ते सुया वेयरणीभिदुग्गा, णिसिओ जहा खुर इव तिक्खसोया। तेरांत ते वेयरणिभिदुग्गां उसुचोइया सत्तिसुहम्ममाणा।८। छाया--यदि त्वया श्रुता वैतरण्यमिदुर्गा निशितो यथा क्षुर इच तीक्ष्णस्रोताः। ___ तरन्ति ते वैतरणीमभिदुर्गामिषुनोदिताः शक्तिमु हन्यमानाः॥८॥ अन्वयार्थः--(णिसिओ खुर इव तिवखसोया) निशितः क्षुर इव तीक्ष्णश्रोताः (जइ ते) यदि ते (अभिदुग्गा) अभिदुर्गा- दुःखोत्पादिका (वेयरणी) कथन में सूर्य को वाण की उपमा दी गई हैं तथापि दोनों में महान् अन्तर है, उसी प्रकार यहां के ताप और नरक के ताप में भी भारी अन्तर है॥७॥ ___शब्दार्थ-णिसिओ खुर इव तिक्खसोया-निशितः क्षुर इव तीक्ष्णस्रोता' तीक्ष्ण उस्तरे की धार के समान तेज धार वाली 'जइ ते'-यदि स्वया' जो तुमने 'अभिदुग्गा-अभिदुर्गा अति दुर्गम 'वेयरणी-वैतरणी' वैतरणी नदी को 'सुया-श्रुता' सुना होगा 'ते-ते' वे नारक जीव 'अभिदुग्गां वेयरणि-अभिदुर्गा वैतरणीम्' अतिदुर्गमवैतरणी की 'उसुचोइया-इषुनोदिताः' बाण से प्रेरित किये हुए 'सत्तिसु हम्ममाणा-शक्तिसु हन्यमानाः' तथा भाला से भेदकर चलाये हुए 'तरंतितरन्ति' तैरते हैं ॥८॥ ___ अन्वयार्थ-छुरा के समान तीक्ष्ण धार वाली वैतरणी नदी तुमने सुनी होगी। वह अत्यन्त दुर्गम है और क्षार, उष्ण एवं रुधिर जैसे માટે તફાવત છે, એ જ પ્રમાણે આ પૃથ્વી પરના તાપ (ગરમી) અને નરકના તાપ વચ્ચે ઘણો જ મોટો તફાવત છે. આવા शा- 'णिसिओ खुर इव तिक्खसोया-निशितः क्षुर इव तीक्ष्णस्रोताः' ती अस्तराना पार समी ते धारवाणी 'जइ ते-यदि त्वया' ने तमे 'अभिदुग्गा-अमिदुर्गा' सत्यत दुभ वेयरणी-वैतरणी' वैतरणी नामना नहीने 'सुया-श्रता' समजी री ते-ते' ते ना२8 । 'अभिदग्गां वेयरणिअभिदुर्गा' वैतरणीम्' अत्यत हुभ मेवी वैतरण नहीने 'उसुचाइया-इषु नोदिता.' माथी प्रे२९॥ ४२६ सेवा 'सत्तिसु हम्ममाणा-शक्तिसु हन्यमानाः' मासाथी दीने याम मावस ना२४ ७वो 'तरंति-तरन्ति' तरे छ. ॥८॥ સૂત્રાર્થ—અસ્ત્રાના જેવી તીક્ષણ ધારવાળી વૈતરણી નદીનું નામ તે તમે સાંભળ્યું હશે, તે નદી ઘણી જ દુર્ગમ છે. તે ક્ષાર, ઉષ્ણ અને રુધિર શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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