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________________ ३४४ सूत्रकृताङ्गसूत्र (उज्झमाणा) दह्यमानाः (ते) ते नारका जीवाः (कलुणं थगंति) करुणं दीनं स्त. नन्ति उच्चैः रुदन्ति (रहस्सरा) अरहःस्वराः प्रकटस्वराः सन्तः (तत्थ) तत्र नरकावासे (चिरहितीया) चिरस्थितिकाः प्रभूतकालस्थितिका भवन्तीति ।७॥ टीका--भयसंत्रस्ता जीवाः दिक्षु विनष्टाः यादृशीम् अवस्थामनुमवन्ति, तदर्शयति-'जलिय' मित्यादिना- 'जलिये' ज्वलितम्-जाज्वल्यमानं 'इंगालरासि' अङ्गारराशिम -खदिराङ्गार पुञ्जम् , 'सजोति' सज्योतिः ज्योतिषा तीव्रज्यालया सह वर्तते इति सज्योतिः । 'तत्तोवर्म' तदुषमाम् , तेन साकमुपमा सादृश्यं विद्यते 'ते-ते' वे नारक जीव 'कलुणं थणंति-करुणं स्तनंति' दीन शब्द करते हैं 'अरहस्सरा-अरहास्वराः' उनका शब्द प्रकट होता है 'तत्य-तत्र' नरकावास में 'चिरहितीया-चिरस्थिलिकाः' चिरकाल तक नरक में निवास करते हैं ॥७॥ अन्वयार्थ--ज्वालाओं से युक्त अगारों की राशि तथा अग्नि से तपी हुई भूमि के समान नरकभूमि पर चलते हुए वे नारक जीव करुणरुदन करते हैं। उनकी रुदनध्वनि प्रकट में सुनाई देती है। नारक वहां चिरकाल तक इसी दशामें रहते हैं ॥७॥ टीकार्थ--वे नारक जीव भय से त्रस्त होकर और नाना दिशाओं में भाग कर जैली अवस्था का अनुभव करते हैं, उसे सूत्रकार दिख लाते है-खदिर (खेर) के जाज्वल्यमान अंगारों के समान तथा तीव्र ज्वालाओंवाली अग्नि के समान तप्त वहां की भूमि होती है, उसी भूमि 'कलुज थणंति-करुण स्तनन्ति' हीनतावणा होनी ॥२ अरेछ. 'अरहस्सराअरहःस्वराः' प्रगट था श तमा 'तत्थ-तत्र' ते २४वासभा 'चिरदितीया-चिरस्थितिकाः' ain समय पर्यन्त तनवासमा निवास ४२ छे. ॥७॥ સૂત્રાર્થ-જવાલાએથી યુક્ત અંગારાના ઢગલાં તથા અગ્નિ વડે તપેલી ભૂમિના જેવી નરકભૂમિ પર ચાલતાં નારકે આર્તનાદ કરુણ વિલાપ આદિ કરે છે. તેમના રુદનના કરુણ સૂરે ત્યાં સ્પષ્ટ રૂપે સંભળાયા કરે છે. નારકને all tm सुधी त्या २९७ ५ छ. ॥७॥ ટીકાથે–ભયથી ત્રાસી ગયેલા તે નારકે જુદી જુદી દિશાઓમાં નાસભાગ કરતાં કરતાં કેવી યાતનાઓનો અનુભવ કરે છે, તે સૂત્રકાર પ્રકટ કરે છે–ખેરના પ્રજ્વલિત અંગારાઓ જેવી તથા તીવ્ર જવાળાઓવાળી અગ્નિના જેવી તપ્ત ત્યાંની ભૂમિ હોય છે. એ ભૂમિ પર નારક જીવને ચાલવું પડે - શ્રી સૂત્ર કતાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006306
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages728
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size40 MB
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